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गोठ बात

कहाँ गंवा गे सिरतोन के मनखे




एक दिन के बात आय एक ठन कुकुर पिला दिनभर हमर गाँव के रद्दा म किंजरत रीहिस अऊ ओ रद्दा म बिक्कट गाड़ी मोटर चलत रथे। पिला बड़ सुग्घर धवरी रंग के गोल मटोल दिखत रीहिस जेन देखे तिही ओखर संग खेले के जतन करे लागे। फेर कोनहो वोला रद्दा ले नई टारीन अऊ ओखर माई हा घलो कभू तिर म आये ताहन फेर आने कोती चल देवय। अईसन दिनभर होईस।
फेर रतिहा के आठ बजे अलहन होगे ओ पिला ल एक ठन गाड़ी वाला हा रेत के भाग गिस। गाड़ी के टायर में पिला के मुहू हा चपका गिस, लहू चुचवावत राहय अऊ पिला केऊं-केऊं करत पिरा म घोनड़त राहय, ओखर माई के आंसू बोहात राहय अऊ ओहा घेरी-बेरी पिला ल चांटत राहय। रतिहा के घटना आये ते पाये के ज्यादा झन तो नई देखिन फेर जे मन देखिस तहू मन कुछु नई करिन। पिला ल ये हालत में देखे के छोंड़ ओ माई अऊ कुछु नई कर सकत रीहिस। तब हमन चार झन सकला के ओला दुसर ठऊर में राखेन अऊ डॉ. ल बुला के सुजी-पानी करवायेन। ओखर माई अबड़ भूंकिस, चाब तो नई दीही कइके हमन ल डर घलो रीहिस। ओ पिला बिहिनिया के होवत ले नई बाचिस। हमन ल अब्बड़ दुख होइस। फेर अंतस हा ये सोच के जुडइस कि अपन बचाय के उदीम तो करे हन। बड़ अकन कुकुर मन ओकर सकला गिस, अऊ सब के मुहु अइसे दिखत राहय जइसे ओमन हमर मुहु ल मदद मांगे बर देखत हे।
अइसनेच किस्सा एक दिन एक ठन बेंदरा संग होगे ओखर गोड़ टूटे रीहिस अऊ ओहा घिलरत रीहिस फेर जम्मों झन देख-देख के रहीगे फेर कोनहो कुछु नई करीस। ओखरो संगी बेंदरा मन ओला छोड़ के नई भागिन। लटपट म बेंदरा के गोड़ म पट्टटी बंधवात बनिस त ओहा ओ ठउर ले जा सकिस। अइसने कतको अकन किस्सा होवत रथे, फेर हमन कोनहो किस्सा ले कुछु सबक नई सिखन।
जानवर मन तो सिरतोन म कुछु नई कर सकय काबर कि भगवान हा ओमन ल ओखर लइक नई बनाय हवय, तभो ले ओमन अपन डहर ले जतका बनथे ततका करथेच। अऊ अइसने किस्सा जब मनखे मन के बीच म होथे तब मनखे मन हा सब करे के लइक होके घलो कुछु नई करे।
भगवान हा मनखे ल जम्मों परानी ले ज्यादा पोठ बनाये हवय। मेहा देखथंव ते जम्मों जानवर मन अपन बिरादरी के परानी ल बचाये बर एक हो जथे। अऊ बिपत के बेरा में अक्केला नई छोड़य। फेर मनखे मन ऊखर ले उल्टा दिखथे, मनखे हा मनखे के लहू पिये बर मरत हे एक दुसरा के चारी-चुगली करे बिना पेट नई भरय। काकरो बिपत में संग देवय तो नही अऊ ओ मनखे के तमासा बना डरथे। लालच, लबारी, छल, कपट असन सबे दोस मनखेच के भीतर दिखथे।
भगवान हा मनखे अऊ जानवर में फरक बनाये रीहिस। मनखे ल बुद्धि दे के बेरा सोचे रीहिस होही कि मनखे सबो झन के जतन करही दुनिया के बने-बिगड़े ल जानही अऊ साजही। फेर मनखे के अइसन मतलबिहा रंग ल भगवानों नई सोचे रीहिस होही। अब वहू काहत होही कहाँ गवां गे सिरतोन के मनखे?

ललित साहू “जख्मी”
छुरा जिला-गरियाबंद (छ.ग.)