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गीत

मोर छत्तीसगढ़ के भुंइया

मोर छत्तीसगढ़ भुंइया के,कतका गुन ल मैं गांवव | चन्दन कस जेकर माटी हाबे,मैं ओला माथ नवांवव || ये माटी म किसम किसम के, आनी बानी के चीज हाबे | अइसने भरपूर अऊ रतन, कोनो जगा कहां पाबे || इही में गंगा इही में जमुना, इही में हे चारो धाम | चारों कोती तेंहा किंचजरले, […]

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कविता

मटमटहा टूरा

पढ़ई लिखई में ठिकाना नइहे गली में मटमटावत हे हार्न ल बजा बजा के फटफटी ल कुदावत हे। घेरी बेरी दरपन देख के चुंदी ल संवारत हे आनी बानी के किरीम लगा के चेहरा ल चमकावत हे। सूट बूट पहिन के निकले चसमा ल लगावत हे मुंहू में गुटका दबाके सिगरेट के धुंवा उड़ावत हे। […]

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कविता

छत्तीसगढ़ के बासी चटनी

छत्तीसगढ़ के बासी चटनी, सबला बने मिठाथे | इंहा के गुरतुर भाखा बोली, सबला बने सुहाथे | होत बिहनिया नांगर धरके, खेत किसान ह जाथे | अपन पसीना सींच सींच के, खेत म सोना उगाथे | नता रिशता के हंसी ठिठोली, इंहा के सुघ्घर रिवाज ए, बड़े मन के पैलगी करना, इंहा के सुंदर लिहाज […]