भादो महीना अंजोरी पाख के तीजा के दिन सधवा माईलोगन मन अपन अखण्ड सुहाग के रक्षा खातिर श्रध्दा भक्ति ले हरितालिका व्रत (तीजा) के उत्सव ल मनाथें। शास्त्र पुरान म सधवा-विधवा सबे ये व्रत ल कर सकत हें। कुमारी कइना मन घलो मनवांछित पति पाय खातिर ये बरत ल कर सकत हें, काबर के कुंवारी […]
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सावन के तिहार
सावन सोमवार- सावन महीना म भगवान संकर के पूजा करे के बिसेस महत्तम हे। रोज-रोज पूजा नई कर सके म मनसे मन ल हरेक सम्मार के सिवपूजा जरूर करना चाही। बिधान- सम्मार के दिन सिवजी के माटी के मूर्ति बना के जेकर संख्या एक या ग्यारह रहय। कोपरा म पधरा के पंचामृत ले स्नान कराके […]
माँ-छत्तीसगढ़ के महत्व
जेन ह जिनगी भर लइका ल देते रहिथे। तभे तो प्रसाद जी कहे हे अतेक सुग्घर के मन म वोला गुनगुनाते रहाय तइसे लागथे इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्सर्ग छलकता है। मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं, इतना ही सरल झलकता है। व्यास जी कहे हे- ‘गुनी लइका ह दाई […]
बरी बिजौरी करत हे चिरौरी
कहां नंदागे चरौंटा भाजी अउ गुरमटिया के भात। लागय सुग्घर खोटनी भाजी, खोटनी बरी संग भात। अब तो सुरता रहिगे, रंधनी घर के सेवाद सिरागे। सि रतोन बात ताय। तइहा-तइहा के बरी-बिजौरी ल खाय बर जे जुन्ना मनखे बांचे हे ते मन तरस गे हे। डुबकी, चीला, बूंदिया, भजिया के कढी घला आज रंधनी घर […]
जइसे खाबे अन्न तइसे बनही मन
‘सेठ ह कहिथे- महंतजी, मे ह चोरी के बाहना बिसाय रहेंव व वोमा मोला अड़बड़ फायदा होइस तेकरे सेती में ह मंदिर म दान दे रहेंव। महंत जी वो अनाज के प्रभाव ल समझिस’ हमर खवई पिययि ह हमर मन का बनाथे- बिगाड़थे एकरे सेती हमर सास्त्र-पुरान ह खाय-पिये म पबरित रहय। अइसे बताय हे। […]
स्वाधीनता सेनानी डॉ. सम्पूर्णानंद के अपन देस के संस्कृति म खूब सरधा रहिस। वोकर इच्छा रहिस के हमर देस ह राजनीति भर म नहीं भलुक संस्कृति जेन हमर देस के हे वोहू म तरक्की करय अउ स्वतंत्र भारत म भारतीय सिक्षा नियम लागू होवय। देस जइसने आजाद होइस। डॉ. सम्पूर्णानंद उत्तर परदेस के सिक्षा मंत्री […]
भाव के भूखे भगवान – नान्हे कहिनी
एक समे के बात आय, एक झन नानकुन लइका पेड़ तरी बइठे रहय अउ का जानी काय-काय बड़बड़ावत रहय। उही करा एक झन महराज रद्दा रेंगत पहुंचगे। वो ह देखिस वो लइका ह कुछु-कुछु अपने अपन बड़बड़ावत हे। वो ह पूछिस- कस बाबू तैं अकेल्ला बइठे काय बड़बड़ावत हस? वो लइका कथे महाराज! मोर दाई […]
पेड़ लगावा जिनगी बचावा
‘पेड़ लगाए के महत्त बहुत हावय। जेन पेड़ ल लगाये जाथे ओखर उपयोग मनखे ह कोनो न कोनो रूप म करथे। पीपर लगइस त सरीर ल दिन रात जीवनदायनी आक्सीजन मिलत रहिथे त वोकर उमर ह बाढ़ जथे वो ह सुवस्थ रहिथे। ऐखरे बर कहे गे हावय के पीपर पेड़ लगइया हजारों बछर ले पताल […]
अनुवाद : बारह आने
(मोरेश्वर तपस्वी ”अथक” द्वारा लिखित ”बारह आने” का अनुदित अंश) वो ह मोर हाथ ल धरलिस अउ एक ठन छोटकन पुड़िया दे के मोर मुठा ल बंद कर दिस अउ कहिस- बाबू जी, आज मोर मंसा ह पूरा होगे। मैं तुम्हीं ल खोजत रहेंव। आज मिलगेव। ये पुड़िया म तुंहर बारा आना ह हावय। बाबूजी, […]
एक ठन गंवई रहय। उहां मनसे परेम लगा के रहत रहंय। एक दुसर के सुख-दु:ख म आवंय-जायं, माई लोगिन, बाब पिला मन घला संघरा गुठियावयं बतावयं, कोनो ल काकरो ऊपर सक-सुभा नि रहय, फेर परेम के पूरा ह काला अपन डहर तिर लिही तेला कोनो नि जानंय, इही कथें आयं, कहत बांय हो जाथे कहिके। […]