संगी हो हमर धान के खेत लहलहावत हावय अउ हमर मिहनत के फल अब हमर कोठार तहॉं ले कोठी म समाये के अगोरा देखत हावय. महामाई के सेवा हम पाछू नौ दिन ले हिरदे ले करेन, राम लीला म हमर लइका मन ला पाठ करत रहिता कुन देखेन अउ हिरदे म रामचरित मानस के सीख ला गठरी कस बांध लेहेन. आज दसेला तिहार म हम सब के मन म कलेचुप बईठे रावन ला बारे के पारी हे. आवव हम अपन खातिर, अपन परिवार अउ समाज के खातिर ये रावन के…
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तिलमति-चांउरमति : छत्तीसगढ़ी लोककथा-2
बाम्हन-बम्हनिन एक सहर म रहत रहिन। दोखहा पेट के कारन उनला भीख मांगे बर एती-उती जाय ल परय।। एक दिन भीख म उनला दू ठो बेल मिलिस। बेल कच्चा रहिस तौ ओला पकोए बर ओमन एक ठो ल तील म अउ दूसर ल चांउर म गड़िया देइन। दिन उपर दिन बीतत गइस अउ ओमन गड़ियाए बेल के सुरता अइसे बिसरा दिन जानौ-मानौ बेल उनला मिलेच नइं रहिस। एक दिन राजा के घोड़सार ले घोड़ा ढिला के जो छूटिस के हड़बड़ी मचगे अउ दीवान संग सिपाही मन हदबिद-हदबिद भागिन। घोड़ा हर…
Read Moreढ़ूंढ़ी रक्सिन: छत्तीसगढ़ी लोककथा – 1
कोलिहा अउ बेंदरा दूनों मितान बदिन। जउन काम करैं दूनों सोंच-सोंच के जउन फ़ल गवैं दूनों बांट-बांट खांवैं। ढूंढ़ी रक्सिन एक दिन नदिया नहाय गिस तौ कोलिहा सो बेंदरा ह कहिस-” जा मितान! ओखर घर मा घुसर के सुघ्घर-सुघ्घर बने जिनिस ला खाबे, तेखर पाछू मंय जाहूं।” कोलिहा ढूंढ़ी रक्सिन के घर हबर के खावत-मेछरावत रहिस के थोरके बेर पाछू ढूंढ़ी रक्सिन आइस्। ओही डहार ले लगे संकरी ल देख के कहिस -” मोर मंडुरिया म कोन रे?” कुछु आवाज़ नई पाये के पाछू ढूंढ़ी रक्सिन तरिया पार जाके बइठे…
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