Categories
कहानी

ढ़ूंढ़ी रक्सिन: छत्तीसगढ़ी लोककथा – 1

कोलिहा अउ बेंदरा दूनों मितान बदिन। जउन काम करैं दूनों सोंच-सोंच के जउन फ़ल गवैं दूनों बांट-बांट खांवैं। ढूंढ़ी रक्सिन एक दिन नदिया नहाय गिस तौ कोलिहा सो बेंदरा ह कहिस-” जा मितान! ओखर घर मा घुसर के सुघ्घर-सुघ्घर बने जिनिस ला खाबे, तेखर पाछू मंय जाहूं।” कोलिहा ढूंढ़ी रक्सिन के घर हबर के खावत-मेछरावत रहिस के थोरके बेर पाछू ढूंढ़ी रक्सिन आइस्। ओही डहार ले लगे संकरी ल देख के कहिस -” मोर मंडुरिया म कोन रे?” कुछु आवाज़ नई पाये के पाछू ढूंढ़ी रक्सिन तरिया पार जाके बइठे रोय लागिस के हाथी आइस। हाथी ल जब सब बात के गम मिलिस तौ ओहर ढूंढ़ी रक्सिन संग ओखर घर आइस। हाथी के गरजे ले कोलिहा भीतरी म बैठे-बैठे कहिस-

हाथी के दू दांत टोरौं।
जीयत बाघ ल थपरा मारौं।
बिच्छी के अरई बनाऔं।
सांप के तुतारी बनाऔं।
ढूंढ़ी रक्सिन ल खोज खावौं॥

एला सुन के हाथी हा भगा गे अउ ढूंढ़ी रक्सिन फ़ेर तरिया के पार जाके बैठे रहिस के बघवा आइस। बघवा ल सब बात के गम मिलिस तौ ओहर ढूंढ़ी रक्सिन संग ओखर घर आइस। बघवा के गरजन ल सुन के आघु तो कोलिहा हा हड़बड़ागे, कलबलागे फ़ेर हिरदे ल ठांठ के कहिस-

हाथी के दू दांत टोरौं।
जीयत बाघ ल थपरा मारौं।
बिच्छी के अरई बनाऔं।
सांप के तुतारी बनाऔं।
ढूंढ़ी रक्सिन ल खोज खावौं॥

बघवा पल्ला भागिस अउ ढूंढ़ी रक्सिन फ़ेर पहुंच गे रोवत रोवत तरिया के पार मा, ओ हा उहां बैठे रहिस के बिच्छी आइस। सबो बात के गम मिलिस तौ अब बिच्छी हा ढूंढ़ी रक्सिन के संग ओखर घर आइस। बिच्छी के पारे गोहार ला सुनके भीतरीच ले ओला गोहार पार के कोलिहा ह कहिस-

हाथी के दू दांत टोरौं।
जीयत बाघ ल थपरा मारौं।
बिच्छी के अरई बनाऔं।
सांप के तुतारी बनाऔं।
ढूंढ़ी रक्सिन ल खोज खावौं॥

फ़ेर काय रहिस, बिच्छी हा पटाटोर भागिस अउ ढूंढ़ी रक्सिन फ़ेर पहुंच गे रोवत रोवत तरिया के पार मा। ए बेरा उहां पहुंचिस सांप हा। सब बात ला जान के ओ हा ढूंढ़ी रक्सिन संग ओखर घर गिस। तु भैया , सांप के फ़ुंफ़कारी ला सुन के कोलिहा मने-मन तो डर्रा गे फ़ेर कैसनो कर के भीतरीच ले बोलिस-

हाथी के दू दांत टोरौं।
जीयत बाघ ल थपरा मारौं।
बिच्छी के अरई बनाऔं।
सांप के तुतारी बनाऔं।
ढूंढ़ी रक्सिन ल खोज खावौं॥

अतेक सुनिस और सांप हा सरलउहन भागिस अउ रोवत रोवत ढूंढ़ी रक्सिन फ़ेर एक बार तरिया के पार मा बैठ गे। संझाकुन हिरदे म धकधकी धरे जब ढूंढ़ी रक्सिन अपन घर हबरिस तौ देखिस छानीं म चघे कोलिहा। ढूंढ़ी रक्सिन ल अब सब समझे बर बेर नई लगिस्। कोलिहा ल छेंक के ओहर पकड़ेच लिस। ढूंढ़ी रक्सिन मोटहा रस्सी के एक छोर ल ओखर गोड़ म अउ दूसर ला खूंटा म बांध के संझा-बिहनिया रोज्जे पांच-पांच कुटेला मारै। देंह हाथ सब्बो फ़ुलगे रहै कोलिहा के।
एक दिन भिनसार ढूंढ़ी रक्सिन के तरिया डहार जाय म बेंदरा अपन मितान कोलिहा ल देखे अउ ओखर हालचाल पुछे गइस। देखते पुछिस-” बड़ मोटागे हस मितान। हालचाल तौ बतावौ। घर डहार आय के नांवे नई लेवौ।” कोलिहा ह बेंदरा ल देखके भभर के कहिस -” संझा बिहनिया अब्बड़ खाय ल मिलथे। एक्को बेर ढूंढ़ी रक्सिन मोला नई छोड़ै। इहां बड़ मजा ले हौं। बेंदरा ललचागे ओखर नीक गोठ ल सुनके अउ दू-तीन दिन्बर बंधाये बर तियार होगे। कोलिहा के रस्सी ल छोरके बेंदरा अपन गर म रस्सी डरवा लिहिस्। कोलिहा ह भगागे अउ अपनेच घर म जाके सुस्ताइस।
थोरके बेर पाछू ढूंढ़ी रक्सिन आइस। भरम म परके कहिस- ” मोर मंडुरिया म कोन रे?” बेंदरा फ़टाक ले कहिस- ” मंय बेंदरा…किच-किच……।” ढूंढ़ी रक्सिन कुटेले-कुटेला अबड़ मारिस अउ जब ओखर अईठ के बइठ गय तभे मरे हे जान के घुरुवा म मेलिस। ढूंढ़ी रक्सिन के दुरिहाए ले जोत पल्ला भागिस के अपनेच घर हबरिस।

दूनों के मितानी छूटगे।
बिसवास हिरदे ले उठगे।
दार-भात चूरगे।
मोह कहनी पूरगे।
संजीत त्रिपाठी

ये कहिनी हा संजीत भाई के ब्‍लॉग आवारा बंजारा म प्रकासित होये हे.

2 replies on “ढ़ूंढ़ी रक्सिन: छत्तीसगढ़ी लोककथा – 1”

अब्बड़ जुन्ना कहानी हे .नानकुन रहन तब अइसने बेंदरा भालू के किस्सा बहुत चले .अब ये नंदा गे . आज आपमन बचपना के सुरता करा देव , एखर बर बधाई .पर एक बात के जरुर अफसोस होथे कि आजकल के लेईकामन ला कम्पप्यूटर ,वीडियो गेम ले फुरसत नई मिलय.पूरा संस्कृति च हा बदलत जावत हे .कुछ उपाय सोचव .

जोहार, संजीव भाई.
सुघ्घर कमाबोन और सुघ्घर रहिबोन सुमता मा करबोन बिचार के बात ला सोलह आना फबत हे गुरतुर गोठ.
आइसनाहे झंडा फहरात रहे के मनसा संग ….

Comments are closed.