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कविता

कबिता : सिध्दिविनायक मुसवा म काबर चढ़थे

सिध्दिविनायक मुसुवा म काबर चढ़थे?
मुसुवा निकल सकथे बघवा के पिंजरा ले,
मुसुवा निकाल घलो सकथे बघवा ल पिंजरा ले
मुसुवा ह पाथे सबले पहिली धान-पान,
जइसे सबले आगू पाथे, गनेस भगवान,
मुसुवाये म चढ़के
लम्बोदर अगुवागे
नम्बर वन बनगे
येखरे सेति गजानन मुसुवा म चढ़थे।

लम्बोदर जी के काबर होथे भारी पेट?
महाराज, रखथे सबके खियाल,
येखरे सेति अपन पेट म लुका, डाल
बांटत रहिथे सब ल, हरथे सबके दु:ख,
नई देख सकय देवा, कोखरो भूख।

गजानन के काबर होथे लम्बो सोंढ़?
गजानन ल कहिथे विघ्नहरन,
अउ एहि कारन
अपन लम्बा नाक ले सूंघ के
अपन भक्तन के दूर-दूर ले,
बाधा-बिघन हरत रहिथे,
हाथी कस, सबके रद्दा साफ करत रहिथे।

गनपति के काबर पसंदीदा होथे खीरा अउ लाड़ू?
गनपति रहिथे सबले आगू,
ओ ल रहिथे सबके फिकर
येखर सेती, सरइया सक्कर अउ सरदी ले बचाए बर
सोंचके झन होवय कोनो ल पीरा
जादा खाथे लाड़ू अउ खीरा

सिध्दिविनायक के एहि सब गुन के सेति
मनखे साल भर ओखर रद्दा जोहथें,
देवतामन के मुखिया, अपन मयारू गनेस जी के
सबले जादा, गियारा दिन ले पूजा करथें।

तेजनाथ
बरदुली पिपरिया
जिला कबीरधाम