बहुत दिन ले नइ आए हस, काबर मॅुह फुलाए हस? ओ बरखा रानी! तोला कइसे मनावौंव? चीला चढ़ावौंव, धन भोलेनाथ मं जल चढ़ावौंव, गॉव के देवी-देवता मेर गोहरावौंव, धन कागज मं करोड़ों पेड़ लगावौंव। ओ बरखा रानी……? मॅुह फारे धरती, कलपत बिरवा, अल्लावत धान, सोरियावतन नदिया-नरवा, कल्लावत किसान… देख,का ल देखावौंव? ओ बरखा रानी…..? मैं […]
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पानी के बूँद पाके, हरिया जाथें, फुले, फरे लगथें पेड़ पउधा, अउ बनाथें सरग जस,धरती ल। पानी के बूँद पाके, नाचे लगथे, मजूर सुघ्घर, झम्मर झम्मर। पानी के बूँद पाए बर, घरती के भीतर परान बचाके राखे रहिथें टेटका, सांप, बिछी, बीजा, कांद-दूबी, अउ निकल जथें झट्ट ले पाके पानी के बूँद, नवा दुनिया देखे […]
कतका सुघ्घर दिखथे वोहा अहा! नान-नान कपड़ा मं। पूरा कपड़ा मं, अउ कतका सुघ्घर दिखतीस? अहा!! केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘ बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. ) 7999385846
सरकारी इसकूल
लोगन भटकथें सरकारी पद पाए बर, खोजत रहिथें सरकारी योजना/सुविधा के लाभ उठाए बर, फेर परहेज काबर हे, सरकारी इसकूल, अस्पताल ले? सबले पहिली, फोकट समझ के दाई ददा के सुस्ती, उप्पर ले, गुरुजी मन उपर कुछ काम जबरदस्ती। गुरुजी के कमी,और दस ठोक योजना के ताम झाम मं, गुरुजी भुलाये रहिथे पढ़ई ले जादा […]
‘‘मोर सोना मालिक, पैलगी पहुॅचै जी। तुमन ठीक हौ जी? अउ हमर दादू ह? मोला माफ करहौ जी, नइ कहौं अब तुंह ल? अइसन कपड़ा,अइसे पहिने करौ। कुछ नइ कहौं जी, कुछ नइ देखौं जी अब, कुछू नइ देखे सकौं जी, कुछूच नहीं, थोरकुन घलोक नहीं जी। तुमन असकर कहौ, भड़कौ असकर मोर बर, के […]
नान्हे कहिनी : आवस्यकता
जब ले सुने रहिस,रामलाल के तन-मन म भुरी बरत रहिस। मार डरौं के मर जांव अइसे लगत रहिस। नामी आदमीं बर बदनामी घुट-घुट के मरना जस लगथे। घर पहुंचते साठ दुआरीच ले चिल्लाईस ‘‘ललिता! ये ललिता!‘‘ ललिता अपन कुरिया मं पढ़त रहिस। अंधर-झंवर अपन पुस्तक ल मंढ़ाके निकलिस। ‘‘हं पापा!‘‘ ओखर पापा के चेहरा, एक […]
नवा साल मं
महिना के का हे संगी हो? आत रइही-जात रइही, जनवरी,फरवरी…। साल के का हे संगी हो? आत रइथे-जात रइथे ये तो, …..दू हजार अठारा, दू हजार अठारा ले दू हजार ओन्नईस, ओन्नईस ले बीस,बीस ले….। बदलत रईही कलेंडर घलोक। महत्तम के बात हे संगवारी हो, हमर नइ बदलना। संगी हो, हमन मत बदलिन, हमर पियार […]
सोंचथौं, कईसे होही वो बड़े-बड़े बिल्डिंग-बंगला, वो चमचमावत गाड़ी, वो कड़कड़ावत नोट, जेखर खातिर, हाथ-पैर मारत फिरथें सब दिन-रात, मार देथें कोनों ला नइ ते खुद ला? अरे! वो बिल्डिंग तो आवे ईंटा-पथरा के, कांछ के, वो कार तो आवै लोहा-टीना के, अउ कागज के वो नोट, वो गड्डी आवै। वो बिल्डिंग आह! डर लगथे […]
चारो मुड़ा हाहाकर मचावत, नाहक गे तपत गरमी, अउ असाढ़ आगे। किसान, मजदूर, बैपारी, नेता,मंतरी,अधिकारी,करमचारी… सबके नजर टिके हे बादर म। छाए हे जाम जस करिया-करिया, भयंकर घनघोर बादर, अउ वोही बादर म, नानक पोल ले जगहा बनावत, जामत बीजा जुगुत झाँकत हे, समरिद्धी। केजवा राम साहू ”तेजनाथ” बरदुली, कबीरधाम (छ. ग.)
पहिनथन अपन कपड़ा ल, रहिथन अपन घर म, कमाथन खेत ल अपने, खाथन अपन हाथ ले, लीलथन अपने मुंह ले, सोंचथन घलो, सिरिफ अपने पेट के बारे म। अपन दाई, अपन, अपन ददा अपन, अपन भाई, अपन, अपन बहिनी, अपन अपन देस, अपन अपन तिरंगा, अपन, मरना पसंद करथन अपन धरम म। मानथन घलो अपनेच […]