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कविता

असाढ़ आगे

चारो मुड़ा हाहाकर मचावत,
नाहक गे तपत गरमी,
अउ
असाढ़ आगे।
किसान, मजदूर, बैपारी,
नेता,मंतरी,अधिकारी,करमचारी…
सबके नजर टिके हे बादर म।

छाए हे जाम जस करिया-करिया,
भयंकर घनघोर बादर,
अउ
वोही बादर म,
नानक पोल ले जगहा बनावत,
जामत बीजा जुगुत झाँकत हे,
समरिद्धी।

केजवा राम साहू ”तेजनाथ”
बरदुली, कबीरधाम (छ. ग.)