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कविता

सरकारी इसकूल

लोगन भटकथें सरकारी पद पाए बर,

खोजत रहिथें सरकारी योजना/सुविधा के लाभ उठाए बर,
फेर परहेज काबर हे,
सरकारी इसकूल, अस्पताल ले?
सबले पहिली,
फोकट समझ के दाई ददा के सुस्ती,
उप्पर ले,
गुरुजी मन उपर कुछ काम जबरदस्ती।
गुरुजी के कमी,और दस ठोक योजना के ताम झाम मं,
गुरुजी भुलाये रहिथे पढ़ई ले जादा
दूसर काम मं।
नइ ते सरकारी इसकूल के गुरुजी,
होथे अतका जबरदस्त
जइसे पराग कन फूल के,
जेन सरकारी गुरुजी बने के योग्यता नइ रखै
नइ ते बन नइ पावै,
तेने ह बनथे संगी गुरुजी पराभीट इसकूल के।
तभे तो टॉप आथें लइका,
सरकारीए इसकूल के,
संगी गलती माली के होथे भले
झन निकालौ फूल के।
आखिर मं एक बात अउ
कड़ुआ हे फेर सच्चा हे,
दाई ददा धियान देही त,
सरकारी इसकूल पराभीट ले अच्छा हे।
   केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’
   बरदुली, कबीरधाम ( छ ग)
       7999385846