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कविता

कहॉं जाबो साहर

कहॉं जाबो साहर काबर जाबो साहर
मिहनत पूजा गॉंव इस्सर भूईया सरग हमर

पेरके जॉंगर पीबोन पसिया
करम के डारा झर्राबो
जाही कहॉं रे मोती बरोबर
बोहत पसीना पझर

चंदा सुरूज कस जग म ऑंखी
दाई ददा के लाठी अन
सेवा बजावत कोरा म रहिबो
जाही पहा रे उमर

धान कटोरा छत्तिसगढ़ म
नइहे कुछू के खानी
सोन चिरैया फुदगत चरथे
दाना जम्मो डहर

धरके असीस दाई ददा के
भूईया के कोरा म उतरबो
सरग खजाना इंहे भरे हे
चल नॉंगर धर

धमेन्द्र निर्मल