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गोठ बात

चिल्हर के रोना

आज के समे अइसन उपाय तो चिल्हर के रोना बर करे नी जा सकय। काबर के चिल्हर के रोना एक, दू अउ पांच रुपिया के जादा रथे अउ एकर नोट छपना बंद हो गे हे।
अरे बंद नी होय होही ते कमती जरूर हो गेहे। तेखरे सेती अब चिल्हर के रोना ल खतम नी करे जा सके। ये सबर दिन के रोना बन गे हे, अम्मर हो गे हे। सरकार चुमड़ी-चुमड़ी सिक्का बांटथे फेर कोजनी चारेच दिन म कहां उछिन हो जथे। चिल्हर के रोना फेर जस के तस। कतको दुकानदार मन कागज के पइसा चलाय ल घलो धर लेथे। अब तोला वो कागज के पइसा ल चलाना हे ते उही दुकान में फेर जा।
सब झन ल ए बात के सुरता होही, एक जमाना म गिराहिक ल भगवान बरोबर माने जाय। केहे जाय के गिराहिक अउ भगवान कब दरसन दे दिही तेला केहे नी जा सकय। फेर अब जमाना बदल गे हे। एकर पाछू कोनो बड़ भारी कारन नइ हे अउ जेन कारन हे तेन ल बड़ भारी कारन घलो केहे जा सकथे। वो कारन हे ”चिल्हर के रोना” । अब एला तुमन बड़ भारी कारन काहौ चाहे नानकुन, ये तुंहर उपर हे। बड़ अचरित बात लागथे जब दुकानदार गिराहिक ल चिल्हर नइ हे कहि के जुच्छा हाथ लहुटा देथे। ओतका बेर सिरतोन ओखर मजबूरी दिखथे। नहीं ते कोन दुकानदार होही जेन ल गिराहिक लहुटाना बने लागत होही? साल भर नइ जाय दू साल नइ जाय एकर रोना घेरी-बेरी उम्हियाते रथे।
अभी जादा दिन नइ बीते हे मय एक ठी बियंग लिखे रेहेंव विकलांग मुद्रा कथा। ओमा एक, दू अउ पांच रुपिया के विकलांगता के बरनन रिहिसे। ओमा चिरहा-फटहा, कपहा, मइलाहा अउ बिस्सौना नोट ले छुटकारा पाय बर कइ ठी उपाय बताय गे रिहिस। एक ठी उपाय रिहिस-नेता मन ल नोट के माला पहिरे के अब्बड़ सऊख रिथे तौ एको पईत इही चिरहा-फटहा, कापा लगे चटकाय- छबाय नोट के माला पहिराय जाय। नेतामन ल चिल्हर के रोना से पाला नइ पड़य काबर के ओला साग-सब्जी लेय बर न हटरी जाय ल पड़य न काहीं जिनिस लेय बर किराना दुकान। ओखर घर तो आले-आले माल अगोतर-अगोतर माड़े रिथे। सब परेशानी तो जनता ल भुगतना हे। जनता तो चिरहा-फटहा नोट के मारे खखुवा जाय राहय। ओमन ये उपाय ल सुनिन तौ नंगतेहे खुस होगे। ओमन सोचिस हमन चिरहा-फटहा नोट के सिकायत करत-करत थक गेन फेर ये नेतामन के कान म जुआं तको नी रेंगिस। अब इही चिरहा-फटहा, कपहा, मइलहा अउ बिस्सौना नोट ले कतका परसान हो गे हे। अउ देखते देखत चिरहा फटहा नोट के करही गंजा गे। एक ठी झूठ-मूठ के देखौटी कार्यक्रम राख के वित्तमंत्री ल माई पहुना बनाय गिस अउ उही ल वो बस्सौना नोट के माला पहिराय गिस। माला अतका होगे के ओमा मंत्री महोदय चपका गे। दूसर दिन अखबार में फोटू सहित समाचार छपगे के ”नोटों की माला की बदबू और उके भार से दबे मंत्री के प्राण-पंखेरू उड़े।”
आज के समे अइसन उपाय तो चिल्हर के रोना बर करे नी जा सकय। काबर के चिल्हर के रोना एक, दू अउ पांच रुपिया के जादा रथे अउ एकर नोट छपना बंद हो गे हे। अरे बंद नी होय होही ते कमती जरूर हो गेहे। तेखरे सेती अब चिल्हर के रोना ल खतम नी करे जा सके। ये सबर दिन के रोना बन गे हे, अम्मर हो गे हे। सरकार चुमड़ी-चुमड़ी सिक्का बांटथे फेर कोजनी चारेच दिन म कहां उछिन हो जथे। चिल्हर के रोना फेर जस के तस। कतको दुकानदार मन कागज के पइसा चलाय ल घलो धर लेथे। अब तोला वो कागज के पइसा ल चलाना हे ते उही दुकान में फेर जा।
तौ चिल्हर के रोना ल कतका बताबे संगी। जतके बताबे ततके कमती हे। कइ बेर तो सिरतोन के रोना रते फेर कइ पईत बैपारी मन के बदमासी जादा रथे। ओमन अपन जिनिस ल जादा बेचाय कहि के चिल्हर के नकली तंगई पयदा करथे। आजकल ये टिरिक ल साग-भाजी वाली मन घला सीख गे हवै। तोर करा एक, दू अउ पांच रुपिया के नोट नइ हे तौ तोला साग-भाजी खवई ल भुलाय ल पर जाही तइसे लागथे। नहीं ते पचीस के जघा पचास के लेय ल परही अउ एके ठी सब्जी ल दु-दी, तिन-तिन दिन असकटात ले खाय ल परही। कतको बेर ओमन आलतू-फालतू चीज ल घलो जंजेर देथे। अब घाटा सहे ले इही सही। चिल्हर के रोना के सेती उधारी नइ लेवइया ल घलो उधारी लेय ल पर जाथे। अतका बेर सब्जी वाली मन के दया-मया अउ बिसवास भाव देखे लईक रथे-”ले जाना, तें भागाथस न में भागत हौं। ले, काली देबे।” फेर दुकानदार मन ये मामला म सबसे चउतरा हें। तोला सामान लेना हे ते चिल्हर धर के तंय जा नहीं तो दुकानदार तोला चुचरा के छोड़ही। एक से लेके दस रुपिया तक पिपरमेंट चुचर नहीं ते दुकान ले जुच्छा लहुट आ। अरे चिल्हर के रोना अइसे रोना आय के एमा सरकार के बुध्दि घला काम नइ करय। हमर सरकार कभू कोनो सिक्का के चलन बंद करे कि घोसना नइ करे हे फेर एक, दू, तीन, पांच, दस, बीस, चार आना अउ आठ आना के सिक्का ल आज के पीढ़ी के लइका मन जाने तको नहीं। हमर छत्तीसगढ़ म एकर चलन बजार ले बाहिर हो गे हे। तभो ले एक ठी अखबार ह अपन किस्मत ल अढ़ाई रुपया काबर रखे हे इहू सोचे के बात हे। कम से कम दू ठी अखबार बिसाबे तभे हिसाब बने बइठही नहीं ते बकवाय हे। आठ आना के घाटा ल तय साह नहीं ते मय वाला किस्सा दिखथे। 31 दिन अउ 29 दिन के महिना में वो अखबार के हिसाब कइसे होवत होही तेन ल भगवाने जाने। चिल्हर के मुद्दा म सरकार ल घेरे के जरूरत हे। जब वो छोटे सिक्का के ढलाई बंद कर दे हे तौ विधिवत ओखर चलन बंद करे के घोसना काबर नी करय। लागथे वो अखबार वाला जान-सुन के ओखर किस्मत ल दू रुपिया आठ आना रखे हे के आठ आना बर लड़ई-झगरा होही तेकर जुम्मेदार सरकार राहय, ”लागे-फूटे खून के धार, हम नइ जानन जुम्मेदार।”
मोटर-गाड़ी म चिल्हर के किस्सा ल झन पूछ। एक ठी गांव ले दूसर गांव जाय बर मिनी बस चलथे। तोर करा चिल्हर हे ते मोलभाव करके कमती किराया म घलो तोर काम चल जाही नही ते नोट देस तौ एक से लेके पांच रुपिया तक के बचत पइसा के वापिस मिले कोनों गैरेंटी नी राहय। अउ चिल्हर के नांव ले के दू-चार रुपिया उपरहा काट लिही तेखरो ठिकाना नइ राहय। सिटी बस म घलो अइसनेहे किस्सा देखे ल मिलथे। अइसन मौका में सवारी अउ मोटरवाला दूनो के ईमान के परीक्छा होथे। फेर ये परीक्छा म कोनो पास नइ होय। जेन ल मौका मिलिथे तेने चिल्हर ल चपक देथे।
चिल्हर के रोना चोरहा, दू नंबर के धंधा करइया अउ जमाखोरी के नीयत के सेती घला बंद होना मुसकिल दिखथे। तचोरहा अउ दू नंबर के धंधा करइया मन ये सिक्का मन ल सकेल के ओला गलाके दूसर जिनिस बनाय के उदिम करथें अउ जमाखोर मन सिक्का ल घर ले बाहिर नइ निकालना चाहय। कई झिन मन मंगइया मन ल देय के काम आही कहि के घला चिल्हर ल जमा करके राखथे, काबर के आजकल के मंगइया मन चंऊर-दार, चीज-बस ल धरन नहीं कहिथे उनला पइसा चाही अउ हमर धरम परानी जनता ह भीख देवई ल पुन्न के काम मानथें। तौ चिल्हर के एक ठी रोना इहू आय। चिल्हर के रोना ले बांचना हे ते सबला सुधरे ल परही नहीं ते तुंहर रोना ले नदिया भले बोहा जाही फेर रोना खतम नइ होय। का कहना हे?
दिनेश चौहान
सीतला पारा, नवापारा-राजिम
जिला रायपुर (छ.ग.)