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कविता

धर ले कुदारी

धर ले रे कुदारी गा किसान

आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे ।

ऊंच-नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही

चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही

झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन

करपा के भारा-भारा बाँट लेबो रे ।

चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार

चल गा दाऊ, चलौ ठाकुर, चल न गा कुम्हार

हरिजन मन घलो चलौ दाई – दीदी मन निकलौ

भेदभाव गड़िया के पाट देबो रे ।

जाँगर पेरइया हम हवन गा किसान

भोम्हरा अऊ भादों के हवन गा मितान

ये पइत पथराबन, हितवा ला अपन हमन

गाँव के सियानी बर छाँट लेबो रे ।


कवि मुकुन्‍द कौशल