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छत्तीसगढ़ी भाखा

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ एकरूपता : मुकुन्द कौशल

बिलासा कला मंच कतीले सन् दू हजार एक म छपे, डॉ पालेश्वरशर्मा के लिखे छत्तीसगढ़ी शब्दकोश के भूमिका म छत्तीसगढ़ी के बैंसठ मानक शब्द मन के मायने अउ ओकरे सँग वर्ण /संज्ञा/वचन/सर्वनाम/विशेषण/क्रिया अउ कृदन्त ले संबंधित ब्याकरन के गजब अकन जानकारी, डॉ. रमेशचंद्र मेहरोत्रा जी ह अगुवा के लिख डारे हवैं। डॉ. चित्तरंजनकर अउ डॉ. […]

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गज़ल

मुकुन्‍द कौशल के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

चुनई के हांका परगे भईया बेरा हे तय्यारी के। अटक मटक के नाचै बेंदरा देखौ खेल मदारी के ।। गॉंव गँवई के पैडगरी हर सड़क ले जुर गेहे तब ले।गँवई-गॉंव मॉं चलन बाढ़गै मधुरस मिले लबारी के।। बोट के भुखमर्रा मन अपन गरब गुमान गॅवा डारिन। इन्‍खर मन के नइये जतका इज्‍जत हवै भिखारी के।। […]

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कविता

धर ले कुदारी

धर ले रे कुदारी गा किसान आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे । ऊंच-नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन करपा के भारा-भारा बाँट लेबो रे । चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार चल गा […]

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कविता

मोर सोनहा बिहान

किरन – किरन के चरन पखारन आरती उतारन, रे मोर सोनहा बिहान, बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां । मोर बिहनिया तोला अगोरत, सइघो रात पहागे छाती पोंठ करेन हम्मन ते, ठंड़का तैं अगुवागे तोला परघाये बर आइन, जुरमिल सबो मितान रे मोर सोनहा बिहान, बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां । दाई – ददा लइका–सियान सब, तोरेच गुन […]

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कविता

भारत के बाग

महर–महर महकत हे, भारत के बाग । भुँइया महतारी के अमर हे सुहाग ।। ममहाती पुरवहिया, झूमय लहरावय डारा–डारा, पाना–पाना, मगन सरसरावय पंड़की–परेवना मन, मन ला लुभावय कोइली हर कुहकै नंदिया गाना गावय मिट्ठु हर तपत कुरू बोलै अमरइया में – कोकड़ा–मेचका जुरमिल गावत हें फाग । उठौ उठौ जँहुरिया अब रात ह पहागै । […]

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कविता

जिनगी के रद्दा

जिनगी के रद्दा अड़बड़ लम्भा दू ठिन हमरे चरन गोड़ ला कहाँ–कहाँ हमन धरन चले पुरवहिया सनन सनन् । बिजहा रे डारेन नाँगर चलाएन धाने के नेवता माँ बादर ला बलाएन किंजर–किंजर के बरसौ रे बादर, तुंहरे पंइया परन सावन भादों मां ठंऊका रे बरसिस पानी झनन झनन चले पुरवहिया सनन सनन् । अगहन मां […]

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कविता

कइसे बचाबो परान

ठगुवा कस पानी ह ठगत हे, मूड़ धरे बइठे किसान ये बिधाता गा मोर कइसे ब चाबो परान । एक बछर नाँगर अऊ बइला ला बोर बोर, ओरिया अऊ छान्ही ले, पानी ह गली खोर, खपरा बीच बोहावै, ना ये भाई, खपरा बीच बोहावय । रद रद, रद रद रोंठ–रोंठ रेला मन, बारी के सेमी […]

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कविता

मोर भाखा

मोर भाखा सँग दया मया के सुग्घर हवै मिलाप रे । अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा, कऊनो सँग झन नाप रे ।। येमा छइहाँ बम्हलई देबी, बानबरद गोर्रइयाँ के देंवता धामी राजिउलोचन सोमनाथ जस भुँइया के ये मां हावे भोरमदेव जस, तीरथ के परताप रे । अइसन छत्तीसगढ़िया भाखा, कऊनो सँग झन नाप रे ।। दमऊ खँजेरी […]

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कविता

तैं ह आ जाबे मैना

तैं ह आ जाबे मैना उड़त उड़त तैंह आ जाबे । मैंह कइसे आवौं ना, मैंह कइसे आवौना, बिन पाँरवी मोर सुवना कइसे आवौं ना मन के मया संगी तोला का बताववं ना तैंह आ जाबे मैना, उड़त उड़त तैह आ जाबे …. पुन्नी के रात मैना चंदा के अँजोर जुगुर–जागर चमकत हे गाँव के […]

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कविता

धर ले कुदारी गा किसान : सोनहा बिहान के गीत

धर ले रे कुदारी गा किसान आज डिपरा ला रखन के डबरा पाट देबो रे । ऊंच–नीच के भेद ला मिटाएच्च बर परही चलौ चली बड़े बड़े ओदराबोन खरही झुरमिल गरीबहा मन, संगे मां हो के मगन करपा के भारा–भारा बाँट लेबो रे । चल गा पंड़ित, चल गा साहू, चल गा दिल्लीवार चल गा […]