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समीच्‍छा

पुस्तक समीक्छा : धनबहार के छांव म

धनबहार के छाँव म- सुधा वर्मा
प्रकाशन मुद्रण एवं वितरण- पहचान प्रकाशन
मूल्य- 200 रुपए

ये धरती म मनखे के विकास के संगे-संग कहिनी के जनम अऊ विकास के कहिनी सुरू होइस होही। काबर के मनसे जौन देखथे, सुनथे, गुनथे, अनुभव करथे तेला दूसर संग बोलथे, बतियाथे एकरे नांव कहिनी आय। भासा के जनम अउ लिपि के विकास के संग कहिनी अपन वाचिक परम्परा ल छोड़ के लिखित रूप म दिखिस।
हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनों भाषा के सुरूवाती कहिनी मन म संस्कृत के पंचतंत्र, हितोपदेश, कथा सरित्सागर के प्रभाव दिखथे। मोर गोठ ल हास के टारव झन संगवानी मन अरे! मनसे के सुभावे होथे पर उपदेस कुसल बहुतेरे। फेर इही तरह के उपदेस मन समाज ल उचित दिसा देथे, दरपन देखना अउ काला कहिथे?
सुधा वर्मा के कहिनी संग्रह ‘धनबहार के छांव म’ पढ़ेव बड़ नीक लागिस। सिरतों कहंव त साफ सुथरा जगर-मगर करत बड़का दरपन कस लगिस। काबर के ये दरपन म हमर समाज के छोटे बड़े घटना मन साफ-साफ दिखिन। कहिनी के चरित्र (पात्र) मन आय तो सुधा वर्मा के कल्पना के चरित्र फेर अइसे लागथे जाना सबो पत्र मन हमर आघू-पीछे चारों मुड़ा चलत-फिरत हे। कल्पना अउ सच के सही-सही मिलान कर सकना ही हर तो साहित्यकार के सफलता आय त ये बात बर लिखइया ल गाड़ा भर नहीं निदान टुकना भर बड़ाई तो मलना ही चाही नइ मानव त आप मन ‘धनबहार के छांव म’ दू घड़ी बिलम के देखव न…।
137 के संग्रह म 26 ठन कहिनी समाए हवय। छोटे-छोटे कहिनी जादा हे त अंजोर, गरीब गौंटियां, भिजे कांछ असन बड़े कहिनी घलाय संग्रहित हवय। सबो कहिनी म पढ़इया मन बर कोनो न कोनो संदेश मिलथे।
भोंभरा कहिनी के संदेश हे पर्यावरण बचाये बर हम सब लड़बो सकारथ संदेश देहे गये हे। केजा के सीख छत्तीसगढ़ियां नोनी लइकन के उदार मन ल दरसाथे त पर के दु:ख म सरबस लुटा देहे के गुन ल उजागर करथे। फेर केजा अउ गौंटिया के सहज-सरल आकर्षण ल थोरकुन अउ उजागर करे के जरूरत रहि गये हवय।
कम्प्यूटर के सिक्छा मधु के हाड़-तोड़ मेहनत के कथा आय त दूसर डहर आज के नोनी लइकन के स्वाभिमान अउ अस्मिता ल उजागर करइया कहिनी आय मधु के संघर्ष हर आज के नारी जाति बर जब्बर उदाहरण आय।
मितानी म फांस बड़े कहिनी आय जिहां भाई-भाई लड़त-मरत दिखथे तिहां अनिल के तियाग, निर्मल बर आदर्श आय त सीला आदर्श बहू, भौजाई अऊ जीवन संगी बन के उभरथे। कहिनी के दूसर भाग निर्मल के संगी हरीश के मन के दुरभाव पाछू उपजे पछतावा ल बताथे, निर्मल के नांव सकारथ करइया सुभाव के बरनन बलाय म लिखइया सुधा वर्मा के कलम हर नियाव करे हे। ये कहिनी म निबंध सैली के दरसन मिलथे।
‘गियान के जोत’ म फगनी के लगन देखके अकबका जाये बर परथे तभो मानेच बर परथे के फगनी बहू धरम के निभाव पूरी पूरा करे हवय। अइसे लगथे के कहिनी हर प्रौढ़ शिक्षा सर्व शिक्षा साक्षरता अभियान असन कोनो अभियान ल धियान म रखके लिखे गये हवय। सुधा वर्मा लिखे सोला आना सच हे के ‘जीवन साथी’ जब बने होथे तब ऊंचाई के पता नइ चलय, मनखे अपन मंजिल तक पहुंच जथे पता घलो नइ चलय।
‘अंचरा के गठान’ ल पढ़ेंव साबास लिखइया ल काबर के कन्या भ्रूण हत्या के जमाना मं पुरेना के दाऊ बेटी कमला के जनम के खुसी म बाजा बजवाथे, मिठाई बांटथे। कहिथे मोर घर लक्ष्मी आगे। ये कहिनी म छत्तीसगढ़ के खान-पान, रहन-सहन पढ़े बर मिलिस बड़ निक लागिस। कमला के घिरलई संग परिवार नियोजन के संदेस, अपन बेटी ल पढ़ा-लिखा के सग्यान होये के बाद बिहाव, बाल विवाह के विरोध सब उजागर होये हे। हमर समाज म अइसनहे नोनी लइकन के जरूरत हावय। ये कहिनी हर भात रांधत-रांधत खिचरी बन गये हावय।
‘अंजोर’ कहिनी म सुखबती के चरित्र चित्रण बने बन परे हे। छै साल के सुखबती लइकाजात आय फेर रांधे-पसाये सीखथे, अतके नहीं बिन महतारी के भाई बर महतारी बन जाथे। फटाका के बारूद म आंखी के जोत हमा जाथे त रामरतन पारूल के आंखी ल सुखबती के ल लगवा देथे अतके नहीं सबो भाई-बहिनी ल अपन के एक अलग परिवार बना लेथे। ये सबो घटना हर सिनेमा के पटकथा कस लागथे दार-साग-तरकारी म नून जरूरी होथे फेर थोरको जादा नून होथे त सेवाद बिगड़ जाथे नूनहुर लागथे अइसनहे कहिनी म आदेश के जघा होथे।
‘गरीब गौंटिया’ म जोजवा के 3 झन बुधियार बेटा रहिथे। गनपत बड़े बेटा महतारी बाप बर सरवन कुमार रहिस गांव गिराम के मनसे ओला सहयोग देथे। त ओकरे पठेरा भाई गनेस धुंधकारी लहुट गिस जेहर जियत बाप के मरई ल अगोरत-अगोरत खिसिया के मरिया बर पांच हजार रूपिया के नौकरी म लहुट जथे। गरीब गौंटिया के मरिया बर गांव के मनखे सहायता करथे। आज के दिन म समाज के सुख-दुख बांहटे के जब्बर पटंतर बन परे हे। सुधा वर्मा सबो पाय मन के मनोभाव ल सुग्घर ढंग ले लिखे हावय। फेर लिखे हे न ‘तइहा के बात बइहा ले गे’ सही आय…। आजकल गांव-गंवई म घलाय मसीनी जिनगी हर अपन असर देखाये लग गये हे। निचट लकठा के रिस्ता घलाय म सुवारथ के तोरी-मोरी के जहर-महुरा घुरत जावत हे।
कहिनी संग्रह के आदेश, उपदेश मन समाज बर बड़ जरूरी हावय। सुग्घर कहिनी संग्रह हे प्यारे लाल गुप्त के लिखे ‘मोर अब्बड़ सुग्घर गांव, जइसे लछमी जी के पांव।’ सुरता आइस। लिखइया के उार सोच उदार भाव के गवाही देवत कहिनी संग्रह आय। तभो कोनो-कोनो जघा म अति नाटकीयता के छांव मिलथे। दूसर बात के संवाद हर कहिनी ल आघू बढ़ाथे। संवाद के कमी हर निबंध सैली कती इसारा करथे। मन के असमंजस ल उजागर करइया प्रसंग के कमी हर कहिनी के गंभीरता म कमी लान देथे। ते पाय के चरित्र-चित्रण घलाय समंगल नइ होये पावय।
भासा हर सदानीरा कहाथे। आने भासा के सब्द मन भासा ल ब्यौहारिक रूप देथे तभो चिपका लेथे। लाड़-दुलार, मंजिल तोड़त-तोड़त असन प्रयोग चिटिक खटकथे त हींग लागिस न फिटकरी रंग चोखा, हर नून के सुरता करा देथे। अइसन ल प्रयोग हर जगर-मगर करत कहिनी संग्रह म काजर के डिठौना कस लागथे।
संगवारी मन बहुते लिखई हर बाबू ले बहुरिया गरू हो जाही तेइ पाय के कलम ल मढ़ाए के पहिली आप मन ला नेवता देवत हंव कोनो बने दिन सांइत देख के धनबहार के छांव म आके बैठव न… सिरतो कहत हंव थकासी मेटा जाही, मन जुड़ाही। छत्तीसगढ़ी कहिनी के भण्डार भरइया ये कहिनी संग्रह ल आप मन के दुलार मिलय। सरसती दाई सुधा वर्मा के कमल ल चलत रहे के असीस देवय। इही बिनती करके आप मन करा बिदा मांगत हंव।
सरला शर्मा
भिलाई