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कविता

भक्ति के जोत जलाले

भक्ति के जोत जलाले संगी , इही ह काम तोर आही ।
ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही ।
चार दिन के चटक चंदैनी , फेर अंधियारी राते ।
करम धरम तै कर ले संगी , सुख से जिनगी बिताले ।
तर जाही तोर पापी चोला, नाम तोरे रहि जाही ।
ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही ।
माता बर तै चुनरी फुंदरी, छप्पन भोग लगाये ।
घर में दाई तरसत हाबे, पानी नइ पीयाये ।
पहिली पूजा दाई के कर तैं, माता खुस हो जाही ।
ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही ।
दया धरम के जोत जलाले, दुख पीरा के बाती ।
श्रदधा के तै फूल चढाले, नौ दिन अऊ नवराती ।
कर ले सेवा दीन दुखी के, नाम अमर हो जाही ।
ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही ।

महेन्द्र देवांगन “माटी “
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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