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कविता

तोर बघवा ल तो ढिल दे दाई

तोर बघवा ल तो ढिल दे दाई,
कोलिहा मन हा आवत हे।
हमरे दाना पानी खाके,
हमी ल गुर्रावत हे..।।

जेन ल घर मा सरन देन,
हमी ल आँखी देखाथे।
बैरी के गुनगान करके,
भुईंयां ल गारी सुनाथे
जघा जघा आतंक के रुख ल लगावत हे..
तोर बघवा…

रोज के उदिम, कुकुर ह,
बघवा ल भूंकत हे।
बघवा घलो चलाक,
बंदूक मा धूंकत हे
आजकल कतको कोलिहा
कश्मीर म लुकावत हे…
तोर बघवा…..

हाड़ा चुहकइया कोलिहा,
बरमा ले भाग के आवत हे।
हमर गांव के कोलिहा मन,
उनला परघावत हे।।
हमर गांव म बसाए बर
हुवां हुवां नरियावत हे….
तोर बघवा ल….

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं. 9977535388
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