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कविता

संसो झन कर गोरी

संसो झन कर गोठ हा करेजा म रहि जाही।
मया करे के येही बेरा हे नई तो पहर हा सिरा जाही।।
आबे मोर तीर म ता तोला मया के झुलना झुलाहुं।
लाली टिकली ला तोर मुड़ म सजाहुं।
आँखि ला टेढ़ के एके कनी देखथस।
मया देके पारी म अपन मुँह ला फेरथस।
मोर अतका मयारू फेर तैं हा कहां पाबे।
मोर मया बानी ल दूसर संग कईसे गोठियाबे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
प्रशिक्षणअधिकारीआईटीआईमगरलोडधमतरी।
मो:-7722906664,7987766416