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हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे : डॉ. विनय कुमार पाठक के गीत





जिहाँ जाबे पाबे, बिपत के छांव रे।
हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे॥
खेत म बसे हावै करा के तान।
झुमरत हावै रे ठाढे-ठाढे धान॥
हिरदे ल चीरथे रे मया के बान।
जिनगी के आस हे रामे भगवान॥
पीपर कस सुख के परथे छांव रे।
हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे ॥
इहाँ के मनखे मन करथें बड़ बूता।
दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता॥
किसान अउ गौटिया, हावैं रे पोठ।
घी-दही-दूध-पावत, सब्बे रें रोठ॥
लेवना ल खांव के ओमा नहाँव रे।
हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे॥
हवाहर उछाह के महमई बगराथे।
नदिया हर गाना के धुन ल सुनाथे॥
सुरूज हर देथे, गियान के अंजोर।
दुख ल भगाथे, सुघ्‍घर चंदा मोर॥
तरइ कस भाग चकमय, का बतांव रे?
हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे॥
मेहनत अउ जांगर जिहाँ हे बिसवास।
उघरा तन, उघरा मन, हावै जिहाँ आस॥
खेत म चूहत पछीना के किरिया।
सीता कस हावैं, इहाँ के रे तिरिया॥
ऐंच-पेंच जानै न, जानें कुछु दांव रे।
हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे॥

डॉ. विनय कुमार पाठक
बिलासपुर