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गीत

तंय उठथस सुरूज उथे

जिहां जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुड़ा ले आजा मोर गांव रे।। खेत म बसे हाबै करमा के तान। झुमरत हाबै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान।। हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान।। पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुड़ा ले, आजा मोर गांव रे। इहां के […]

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गीत

हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे : डॉ. विनय कुमार पाठक के गीत

जिहाँ जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे॥ खेत म बसे हावै करा के तान। झुमरत हावै रे ठाढे-ठाढे धान॥ हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान॥ पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे ॥ इहाँ […]

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छत्तीसगढ़ी भाखा

छत्तीसगढ़ी भाखा हे : डॉ.विनय कुमार पाठक

एक हजार बछर पहिली उपजे रहिस हमर भाखा छत्तीसगढ़ के भाखा छत्तीसगढ़ी आय जउन एक हजार बछर पहिली ले उपजे-बाढ़े अउ ओखर ले आघु लोकसाहित्य म मुंअखरा संवरे आज तक के बिकास म राज बने ले छत्तीसगढ़ सरकार घलो सो राजभासा के दरजा पाए हे। छत्तीसगढ़ी भाखा ल अपने सरूप रचे-गढ़े बर बड़ सकक्कत करे […]

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कहानी समीच्‍छा

भूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ

आज या वर्तमान आधुनिकता के अर्थ में अंगीकृत है। आज जो है वह ‘अतीत-कल’ का अगला चरण है और जो ‘भविष्‍य-कल’ में ‘अतीत-कल’ बन जायेगा, इसलिए आज का अस्तित्व समसामयिक संदर्भों तक सीमित है। परंपरा का अगला चरण आधुनिकता है लेकिन यही रूढ़ हो जाता है तब युग के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाता। […]