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गोठ बात

बियंग : लहू

लोकतंत्र के हालत बहुतेच खराब होवत रहय। खटिया म परे परे पचे बर धर लिस। सरकारी हसपताल म ये खोली ले ओ खोली, ये जगा ले वो जगा किंजारिन फेर बने होबेच नी करय। सरकारी ले छोंड़ाके पराइवेट हसपताल म इलाज कराये के, काकरो तिर न हिम्मत रहय, न पइसा, न समय, न देखरेख करे बर मनखे। बपरा लोकतंत्र हा लहू के कमी ले जूझत हसपताल के एक कोंटा म परे सरत बस्सावत रहय। तभे चुनाव के घोसना होगे। जम्मो झिन ला लोकतंत्र के सुरता आये लगिस। चरों मुड़ा म खोजाखोज मातगे के लोकतंत्र कतिहां हे ? हसपताल म पोट पोट करत लोकतंत्र ला देख, हरेक मनखे ओकर अइसन हालत बर, एक दूसर ला जुम्मेवार ठहराये लगिन। येमन अभू कइसनो करके लोकतंत्र ला फिर से ठड़ा करे के भरोसा देवइन। लोकतंत्र के लहू अतका कमतियागे रहय के, बपरा हा सांस नी ले सकत रहय। ओला तुरते लहू चइघाये के आवसकता परगे रहय।



लहू देबर कतको मनखे आगू आगिन। हरेक मनखे अपन लहू देके लोकतंत्र ला बचाये के सनकलप करे लगिन। लोकतंत्र ला लहू चइघाये के पहिली लहू मेच करना जरूरी रिहीस। बारी बारी ले मनखे मन अपन अपन लहू के सेमफल दे लगिन। पहिली दिन पूजा इसथल के मनखे मन, अपन लहू हा सबले पबरित आय कहिके, हसपताल के आगू म, लहू मेच कराके दान करे बर लइन लगगे। मेच सुरू होगे। फेर लोकतंत्र के बड़ दुरभाग्य रिहीस। काकरो लहू हिंदू निकलगे, काकरो मुसलमान। काकरो इसाई निकलय, त काकरो हा सिख। फेर मेच हो सकइया, भारतीय लहू, एको झिन के नी निकलिस।




दूसर दिन दूसर किसिम के मनखे मन लहू देबर लइन लगइन। काकरो लहू के ग्रुप मेच नी करिस। लोकतंत्र के लहू के ग्रुप हा ओ प्लस रहय। जतका झिन दे बर सकलाये रिहीन तेमा कन्हो के ओ प्लस नी निकलिस। जम्मो झिन के एबी ग्रुप निकलिस जेहा सिरीफ लेवइया ग्रुप आय देवइया नोहे। जेकर ग्रुप कन्हो काल म मिलीच जाय त यहू म लफड़ा हो जाय। ओकर मन के लहू के रंग, थोक थोक बेर म, कपड़ा ओढ़ना कस, लीडर बदलते साठ, बदल जाय। कन्हो कन्हो मनखे मन चलाकी करके, सिरीफ नाव कमाये बर, अपन लहू के ग्रुप ला, अपन परभाव देखाके, ओ प्लस लिखवा डरिन। फेर आगू के जांच म पता चलिस के, अइसन लहू के भितर स्वेत रक्त कणिका के जगा, स्वेत झूठ कनिका के भारी मातरा रहय। ये रक्त कनिका हा अपन सरीर के भितरी के बिमारी ले नी लड़य बलकी, दूसर मनखे ला बिमार बनाके लड़वा देवय। अइसन लहू ला लड़ केनसर के बिमारी घेरे रहय। काकरो लहू म, हीमोग्लोबिन के जगा लूटोग्लोबिन के मातरा बहुतायत म पाये गिस। प्लेटलेट के जगा, लालचलेट के कण कीरा कस बिलबिलावत रहय। कतको लहू म भरस्टाचार के बिसाणु रहय त, कतको म बईमानी के कीटाणु। दूसर दिन घला लहू नी मिल पइस लोकतंत्र ला।



तीसर दिन, तीसर परकार के मनखे मन अपन लहू देबर लइन लगइन। इंकर लहू के ग्रुप ओ प्लस रिहीस फेर अतेक पतला के पानी असन। भूख गरीबी अऊ लाचारी लहू के हरेक बूंद म हीमोग्लोबिन बनके छा जाये रहय। परेम अऊ भाईचारा म रहवइया जीव म, अपन बिमारी अऊ बेकारी ले लड़त लड़त, स्वेत रक्त कनिका सिरा चुके रहय। प्लेटलेट हा इंकर हिम्मत कस अतका कमतियागे रहय के, कटे फिटे ले लहू के थक्का नी जमय बलकी, धारे धार आंखी डहर ले आंसू बनके लहू हा निथर जाय। इंकर लहू के एक अऊ खासियत निकलगे के, जेकर लबारी के मिठ मिठ बात म फंस जाये तेकरे कस, लहू के रंग बदल जाय। लोकतंत्र ला लहू नी मिलिस। एकदमेच छटपटाये लगिस।
तभे दूसर देस के आतंकवादी मन देस उपर हमला कर दिस। देस के सुरकछा करइया जवान के लहू, जइसे धरती म गिरिस तइसने, इही लहू हा बिगन कन्हो मसीनी उपाय के, लोकतंत्र के देंहें म रग रग रग रग दऊंड़े लगिस। लोकतंत्र के देंहे म गरमी आगे। खटिया ले उठके बिगन काकरो सहायता के अपने अपन खड़ा होगे लोकतंत्र हा।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा