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कविता

चँदा दिखथे रोटी कस

अक्ति के बोनी बितगे
हरेली के बियासी
लाँघन-भूखन पोटा जरत
कोन मेर मिलही भात तियासी
देवारी बर लुवई-टोरई
मिस के धरलीन धान
खरवन बर रेहरत रहिगेन
गौटिया मन देखाइन अपन शान
जन-जन खाइन
मालपुआ फरा ठेठरी
नइ खुलिस हमर बर
ककरो गठरी
गाँव म घर नहीं
न खार म खेत
चँदा दिखथे रोटी कस
कर लेतेव कोनो चेत

असकरन दास जोगी
9340031332
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