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कविता

गीत – बाँसुरिया के तान अउ सूना लागे घर अँगना

बाँसुरिया के तान

बाँसुरिया के तान मा, नचावय कन्हैया।
राधा रानी घलो नाचै,बजावै पैजनियाँ।
बाँसुरिया के………..

माई जसोदा मोर, दही ला गँवाडारिस।
गोप गुवालीन मन, सूध भुला डारिस।।
रद्दा ला छोड़ कहाँ, जावत हे जवईया।
बाँसुरिया के………..

गईया चरावत सबो,खेले सब ग्वाला।
पनिया भरत छेड़े, दिखे भोला भाला।।
पनघट आय फोरे, पानी के गघरिया।
बाँसुरिया के…………

चिरई चुरगुन घलो, धुन मा मोहाय हे।
तोर बँसरी राधा के, मन मा समाय हे।।
देख लीला कान्हा के, मन मा बसईया।
बाँसुरिया के………..



सूना लागे घर अँगना

सूना लागे घर अँगना, दुवार सजना।
मोर जीवरा धड़के,बार बार सजना।।
सूना लागे घर अँगना………..

बेरा हा कइसे मोर, पहावय नहीं गा।
मोर दुःख तोला, जनावय नही गा।।
बड़ दिन होगे, अँखियाँ चार सजना।
सूना लागे घर अँगना………..

जिनगी के गाड़ी अब, चले नहीं जाय।
मया पीरा मा अब, खवाए नहीं जाय।।
मन भँवरा उड़ावै,पाँखी मार सजना।
सूना लागे घर अँगना…………

रद्दा तोर देखत, आँखीं अँधरी लागे रे।
दुनिया हा मोला, कइसे बैरी लागे रे।।
मोर पिरोहिल आ, एक बार सजना।
सूना लागे घर अँगना……….

बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा, कबीरधाम (छ.ग.)
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