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कविता

पताल के चटनी

चीरपोटी पताल अऊ बारी के मिर्चा डार के सील मे,
दाई ह चटनी बनाय जी,
सिरतान कहात हंव बड़ मिठावय,
दु कंवरा उपराहा खवाय जी,
रतीहा के बोरे बासी संग, मही डार के खावन,
अपन हांथ ले परोसय दाई, अमरीत के सुख ल पावन,
बदल गे जमाना, सील लोड़हा ह नंदागे जी,
मनखे घलो बदल गे संगे संग, मसीन के जमाना आगे जी,
अब बाई बनाथे चटनी, मिक्सी में पीस के,
थोरको नई सुहाय जी,
गरज टारे कस पीस देथे थोरको मया नई मिलाय जी।
बिहनीया के गोठ आय,
भैया ह चिल्लाथे, ये टुरी काबर रोत हे,
भऊजी कथे, मैगी बर पदोत हे,
पातर रोटी ल नई खांव कथे,
बिन मैगी के इसकुल नई जांव कथे,
सुरता आगे नानपन के,
दाई गांकर रोटी बनात रिहीस,
पताल के चटनी संग अपन हांथ ले खवात रीहीस।

धर्मेन्द्र डहरवाल
ग्राम सोहागपुर जिला बेमेतरा
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