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कविता

देवारी के दीया

चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।
अंधियारी ल दूर भगाके, जीवन में अंजोर लाबो।।
कतको भटकत अंधियारी मे, वोला रसता देखाबो।
भूखन पियासे हाबे वोला, रोटी हम खवाबो।।
मत राहे कोनो अढ़हा, सबला हम पढ़ाबों।
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।

छोड़ो रंग बिरंगी झालर, माटी के दीया जलाबों।
भूख मरे मत कोनो भाई, सबला रोजगार देवाबो।।
लड़ई झगरा छोड़के संगी, मिलबांट के खाबो।
चल संगी देवारी मे, जुर मिल दीया जवाबो।।

घर दुवार ल लीप बहार के, गली खोर ल बहारबो।
नइ होवन देन बीमारी, साफ सुथरा राखबो।।
जीवन हे अनमोल संगी, एला सबला बताबो।
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।

पियासे ल हम पानी देबोन, भूखे ल खवाबो।
जाड़ में काँपत लोगन ल, कंबल हम ओढ़ाबो।।
भेद भाव ल छोड़ के, हाथ मे हाथ मिलाबो।
चल संगी देवारी में , जुर मिल दीया जलाबो।।

महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com