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कविता

गरीब के देवारी

गरीब के देवारी
का पूछथस ? संगवारी।
जेकर कोठी म धान हे
ओखर मन आन हे।
पेट पोसा मजदूर बर
सबर दिन अंधियारी ॥
का पूछथस संगवारी –
गरीब के देवारी।
उघरा नंगरा लइका के
सुसवाय महतारी।
जिनगी भर झेलथे –
करम छंड़हा , लाचारी।
का पूछथस संगवारी –
गरीब के देवारी।
दुख जेकर नगदी हे
सुख हे उधारी।
भूख ओकर सच हे
भरपेट – लबारी।
का पूछथस संगवारी –
गरीब के देवारी।
दुनिया अबड़ अबूज हे
बिन मुड़ी के भूत हे।
ईमानदार बइठे हे ठाठा –
बेईमान रोज छेवारी ॥
का पूछथस संगवारी –
गरीब के देवारी ॥

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा