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कहानी

बेंगवा के टरर-टरर

एक समे के बात ये, पानी नी गिरीस। अंकाल पर गे। सब कोती हाहाकार मचगे। सब ले जादा पानी म रहवइया जीव-जंतु मन के करलई होगे। एक ठन बेंगवा ल अपन भाई-बंधु के याहा तरहा दुख ल देख के रेहे नी गीस। ओ मन ल ये केवा ले उबारे बर इंद्र देवता मेर पानी मांगे बर जाये के बिचार करीस। एक कनिक दुरिहा गेय राहय त ओला एक ठन बिच्छी भेंट पारिस अउ पूछथे- बेंगवा भईया तैं लकर-लकर कांहा जावत हस गा?
बेंगवा अपन मन के बात बतईस। बिच्छी ह सुन के बड़ खुस होइस। किथे- ”भईया तैं तो बड़ा पुन्न के काम के बीड़ा उठाय हस। महू ल तोर संग ले चल, सायद मैं तो तोर काम आ सकव।” बेंगवा ल भला का इतराज होतिस। बिच्छी घलो ओकर संग चलिस। आगू जा के उही होइस जउन अइसन मामला म होवत आवत हे। कोनो लोकहित के काम बर सहयोगी के कमी नइ राहय। जइसे आज-काल अन्ना हजारे ह देस ले भ्रस्टाचार ल मेंटाय बर अनसन करत हे। ओकर संग रामदेव बाबा जइसन लाखों लोगन मन खुद ले प्रेरित हो के ये आन्दोलन म सामिल होगे तइसे। बेंगवा अउ बिच्छी संग मंजूर, मधुमक्खी, भेड़िया, सेर, भालू, चीता सबो ये पुनीत काम म सामिल होगें।
जंगल, झाड़ी, नदी, पहाड़, घाटी छेरी-बेरी इंकर रस्ता रोके रहाय। फेर ये मन हांसत-हांसत सबे दुख ल तापत रात-दिन यात्रा चालू रहय। भूख-पियास थकान और मुसकील ल झेलत आगे बढ़ते गिन। काबर कि ये मन पर उपकार बर कमर कस ले रहीन। आखिर एक दिन इन्द्र देवता के महल के आगू म पहुंचगें। अपन जम्मों संगवारी मन ल येती-ओती लुकाय बर कहि दिस अउ बेंगवा ह महल के दुवारी म लगे घंटा ल टन-टन-बजा दिस।
‘देख तो कोन आय हे?’ इन्द्र ह एक झन हट्टा कट्टा अउ भीम करिया सेवक ल कहिथे। सेवक ह कपाट ल खोल के बाहिर अइस, त बेंगवा ह बड़ा आत्मविश्वास ले हुकुम दिस-जा के अपन मालिक ल बता दे, मैं धरती ले पानी के बाबत चरचा करे बर आय हाववं।
‘अच्छा सरकार’। दीन-हीन के भाव देखावत सेवक ह ओकर हंसी उड़इस। फेर अपन हांसी ल रोवत भीतरी कोती चल दिस।
ओकर गोठ ल सुनके इन्द्र घलो खलखला के हांस डारिस। इन्द्र देवता ह अपन बगइचा ले कालिया नाग ल बलईस अउ किथें- ‘जस महल के दुआरी म तोर सुवादिस्ट भोजन बइठे हे।’
कालिया शान म अंटियावत बेंगवा ल लीले बर अइस, ओतके बेरा झुंझकुर म लुकाय मंजूर हा कालिया ऊपर झपट्टा मार के ओकर कहानी खतम कर दिस। इन्द्र देवता घुस्सा म लाल-बाल होगे। मंजूर ल मारे बर जंगली कुकुर मन ल भेजिस। बिचारा कुकुर मन ल भालू, बेंदरा, कोलिहा मन मार डारथें। इन्द्र देवता ह अपन सेवक ल बड ज़बर तलवार धरा के भेजथे ओला बिच्छी ह डंक मार के घायल कर देथे। अपन गोड़ ल धर के उही मेरन चिचियावत गिर परथे, मधुमक्खी ह ओकर देंह भर ल चाब-चाब के ओकर बारा बजा देथे। ओकर हात ले तलवार फेंका जथे उही बेरा म सेर-भालू, चीता, कोलिहा मन ओकर ऊपर माछी सहीक झूम जथें। देखते-देखत उही मेर ओकर सरी अंग ल तिड़ी-बिड़ी कर देथे। इन्द्र देवता ह खतरनाक स्थिति ल देखके गुरु बृहस्पति मेर सुलाव मांगथे।
बृहस्पति महाराज समझाथे- ‘कोनो महान उद्देस बर जाति, धरम अउ वर्ग के भेदभाव ल भुलाके जब कोई संगठन आगू आथे त ओकर पुकार ल दबाय नइ जा सकय मोर सुलाह हे के तैं समझौता कर ले।’
इन्द्र देवता सलाह ल मान जथे। बेंगवा ल भीतरी म बलाथे चरचा के बाद इन्द्र देवता पानी बरसाय बर तियार हो जथे। बेंगवा खुसी म तुरते किथे- ‘महाराज! में तो नानकीन जीव आंव। ये उपकार के बदला नी चुका सकंव, फेर जब भी तैं पानी बरसाबे में हर आभार माने बर नी भुलावंव।’
ये किस्से तो जुग-जुग जुन्ना हे फेर आज घलो पानी गिरथे त बेंगवा टर्र-टर्र के भासा म इन्द्र देवता ल धन्यवाद देय बर नी भुलाय।

विट्ठल राम साहू ‘निच्छल’
महासमुन्द