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कविता

जब ले बिहाव के लगन होगे

संगी, जब ले बिहाव के लगन होगे
बदल गे जिंनगी,मन मगन होगे।
सात भांवर, सात बचन,
सात जनम के बंधन होगे।
एक गाड़ी के दू चक्का जस,
दू तन एक मन होगे।
सांटी के खुनुर- खुनुर,
अहा! सरग जस आंगन होगे।
भसम होगे छल-कपट सब,
बंधना पबरित अगन होगे।
नाहक गे तन्हाई के पतझड़,
जिंनगी तो अब चमन होगे।
समे गुजरगे तेन गुजर गे भले अइसने,
अब ले एक-दूसर के जीवन होगे।
मोर जीवन साथी सबले सुघ्घर,
देखके ये भाव, सब ल जलन होगे।
एक ले भले दू कहिथें,
दूनों के किस्मत मिलगे, सुख के साधन होगे।
का बतांव संगी, जिंनगी अब,
अरथ, धरम, काम, मोक्छ के जतन होगे।

केजवा राम साहू ”तेजनाथ”
बरदुली, पिपरिया, कबीरधाम
7999385846