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कविता

झिरिया के पानी

मयं झिरिया के पानी अवं,
भुंइया तरी ले पझरत हवव,  मयं झिरिया के पानी अवं,
मयं झिरिया के पानी…….

अभे घाम घरी आगे,
नदिया नरवा तरिया अटागे,
नल कूप अउ कुआं सुखागे,
खेत खार, जंगल झारी कुम्हलागे,
तपत भुईया के छाती नदागे.
पाताल भुंइया ले पझरत हवं,मयं झिरिया के पानी अवं,
मयं झिरिया के पानी …………

गांव गवई, भीतरी राज के,
परान ल बचाय के मोर उदिम हे,
करसा ,हवला ,बांगा धरे,
आवत जम्मो मोर तीर हे,
अमरित हवय मोर पानी रे,
कभू नइ सुखावव,मयं झिरिया के पानी अवं,
मयं झिरिया के पानी ………..

फेर मोरो पानी सुखावत,नदावत हे,
जंगल-झारी-पहार जम्मो कटत हे,
परियावर म फहिरे प्रदूसन हे,
चारो अंग पानी बर हाहाकार हे,
कइसे जीही जीव पानी के अकाल हे,
रूख-राई-पहार बचा लव,मयं झिरिया के पानी अवं,
मयं झिरिया के पानी…………

खरोड़त थोर थोर पानी ले,
बूंद-बूंद म करसा हर भरथे,
पानी के अमोल मोल हे,
पियासे के पियास बुझावत हे,
जुड़ावत हिदय के पीरा हे
जिनगी देवइया मयं झिरिया के पानी अवं,
मयं झिरिया के पानी ………..

कवयित्री
डॉ.  जयभारती चन्द्राकर
प्राचार्य
सिविल लाईन गरियाबंद
जिला गरियाबंद छ. ग.
मोबाइल न. 9424234098