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कविता

साहित्यिक पुरखा के सुरता – कपिलनाथ मिश्र

दुलहा हर तो दुलहिन पाइस
बाम्हन पाइस टक्का
सबै बराती बरा सोंहारी
समधी धक्कम धक्का ।

नाऊ बजनिया दोऊ झगरै
नेंग चुका दा पक्का
पास मा एक्को कौड़ी नइये
समधी हक्का बक्का ।

काढ़ मूस के ब्याह करायों
गांठी सुक्खम सुक्खा
सादी नइ बरबादी भइगे
घर मा फुक्कम फुक्का ।

पूँजी रह तो सबे गँवा गे
अब काकर मूं तक्का
टुटहा गाड़ा एक बचे हे
वोकरो नइये चक्का ।

लागा दिन दिन बाढ़त जाथे
साव लगावे धक्का
दिन दुकाल ऐसन लागे हे
खेत परे हे सुक्खा।

लोटिया थारी सबो बेंचागे
माई पिल्ला भुक्खा
छितकी कुरिया कैसन बाँचे
अब तो छूटिस छक्का।

आगा नगाथैं पागा नगाथैं
और नगाथैं पटका
जो भगवान करै सो होही
जल्दी इहाँ ले सटका ।।

कपिलनाथ मिश्र