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कविता

पितर पाख म साहित्यिक पुरखा के सुरता – कोदूराम दलित

मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग
जइसन देखय समय ला, तइसन बदलय रंग
तइसन बदलय रंग, बचाय अपन वो चोला
लिलय गटागट जतका, किरवा पाय सबो ला
भरय पेट तब पान पतेरा मा छिप जावय
ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय ।।

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भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय
कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय
कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के
खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के
चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही
तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।।

koduramdalit

कोदूराम दलित