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कविता

खेती किसानी

बादर गरजे बिजली चमके , गिरय झमाझम पानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।।
खातू कचरा फेंकय सबझन , नाँगर ला सिरजाये ।
काँटा खूँटी साफ करय सब , मेड़ पार बनवाये ।।
चूहत रहिथे परछी अब्बड़ , छावय खपरा छानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।।

बड़े बिहनिया बासी धर के , चैतु खेत मा जाथे ।
मिहनत करथे सबो परानी , तब बासी ला खाथे ।।
मिहनत के फल मिलथे संगी , हावय बादर दानी ।
सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़