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गज़ल

देख कइसे फागुन बउरात आत हे

लुका झन काहत बड़ ठंडी रात हे,
देख कइसे फागुन बउरात आत हे!

झराके रुखवा चिरहा जुन्ना डारापाना,
नवा बछर म नवा ओनहा पहिरात हे!

रति संग मिलन के तैय्यारी हे मदन के
कोयली ह कइसे रास बरस मिलात हे!

मउहा कुचियाके बांधे लगिन दिन बादर,
फुलके परसा सरसो महुर मेंहदी रचात हे!

फगुवा के राग म निकले तियार बराती,
बनके लगनिया आमा मउर चढ़ात हे!

माते पुरवाई झुमरत बन के बंडोरा,
सुनावत सब ल सरसर बधाई गात हे!

ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
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