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कविता

माटी के पीरा

मोर माटी के पीरा ल जानव जी।
अपन बोली भाखा ल मानव जी।
छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला।
अपन जिनगी म उतारव जी।
सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई,
छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी ।
हम अपनाबो ता सब अपनाही।
अपन भाखा म गुरतुर गोठियाही।
जान के माटी के मया ला।
माटी के पीरा ला दुरिहा भगाही ।
मयारू हे मोर महतारी भाखा।
ओखर मया म बोहाव जी।
बन के नानकुं लइका कस।
अपन महतारी के मया ल जानव जी।
मोर माटी के पीरा ल जानव जी।
महतारी भाखा ल गोठियाव जी।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़