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अनुवाद नाटक

पान के मेम

जान चिन्हार
सूत्रधार, दाई, बप्पा,बिरजू, चंपिया, मखनी फुआ, जंगी,जंगी के पतो, सुनरी, लरेना की बीबी
दिरिस्य: 1
बिरजू:- दाई, एकठन सक्करकांदा खान दे ना।
दाईः- एक दू थपड़ा मारथे- ले ले सक्कर कांदा अउ कतका लेबे।
बिरजू मार खाके अंगना मा ढुलगत हवय, सरीर भर हर धुर्रा ले सनात हवय।
दाईः- चंपिया के मुड़ी मा घलो चुड़ैल मंडरात हावय, आधा अंगना धूप रहत गे रिहिस, सहुआइन के दुकान छोवा गुर लाय बर, सो आभी ले नी लहुंॅटे हवय, दीया बाती के बेरा होगिस, आही तो आज लहुंॅट के फेर।
बागड़ बोकरा के देंहे मा कुकुरमाछी झूमत रहिन, एकरे सेती बिचारा बागड़ रह रहके ऐती ओती कूदत फांदत रिहिस, बिरजू के दाई बागड़ बर रीस खोज डारे रिहिस, पीछू के मिरचा के फूले गाछ, बागड़ के सिवाय अउ कोन खाय होही, बागड़ ला मारे बर वोहर माटी के छेाटे ढेला धरे रिहिस।
मखनी फुआ आथे
मखनी फुआ:- का बिरजू के दाई, नाचा देखे नी जास का?
दाईः- बिरजू के दाई के आघू नाथ अउ पीछू पगहिया रिहि तब न फुआ।
गरम रीस मा बुताय बात फुआ के देंहे मा गड़ गिस अउ बिरजू के दाई ढेला ला तीरेच मा फेंक दिस, बिरजू हर बागड़ ला सूते सूते एक डंडा मार दिस।
दाईः- रूक, तोर ददा हर तोला बड़ हथछुट्टा बना दिस हवय, बड़ हाथ चलात हस मनखेमन मा, रूक।
मखनी फुआः- पनिहारिन मन करा- थोरकुन देखा तो, इ बिरजू के दाई ला, चार मन पटवा के पैसा का होगिस हवय, भिंया मा पांव नी परत हवय, इनसाफ करा, खुदेच आपन मुंॅहू ले आठ दिन पहिली सबो गांव के अलीन गलीन मा कहत फिरत रिहिस, हांॅ इ दारी बिरजू के ददा किहिन हवय, बैलागाड़ी मा बैठाके बलरामपुर ला नाचा देखाय ले जाहूंॅ। बइला आपन घर मा हावय, ता हजार गाड़ी मंगनी मिल जाही। सो मैंहर आभी टोंक दें, नाचा देखोइया सबो औन पौन तियार होवत हवय, रसोई पानी करत हवय, मोर मुंॅहू मा आगि लगे, काबर मैंहर टोंके गे रहेंव, सुनत हौ, का जवाब दिस बिरजू के दाई हर, अर–र्रे हांॅ! बि र जू के मइया के आघू नाथ अउ पीछू पगहिया नी हो तब ना।
जंगी की पतोः- फुआ सरबे सित्तलमिंटी के हाकिम के बासा मा फूलछाप किनारीवाली साढ़ी पहन के यदि तहू भंटा के भंेट चढ़ाथे, ता तोरो नांव घलो दु तीन बीघा धनहर जमीन के परचा कट जाथिस, फेर तोरो घर मा आज दसमन सोनाबंग पटवा होथिस, जोड़ा बैला बिसाथा, फेर आघू नाथ अउ पीछू सौठन पगहिया झूलत रथिस।
सूत्रधार:- जंगी के पतो, मुंॅहजोर हवय, रेलवे टेसन के तीर के टुरी हवय, तीन महीना पहिली गौना के नवा बोहो होके आय हावय अउ सबो कुरमाटोली के रेंधिन सासमन ले एक आधा मोरचा ले चुकिस हवय, ओकर ससुर जंगी नामी दागी चोर हवय, सी किलासी हवय, ओकर डउका रंगी कुरमाटोली के नामी लठैत, एकरे सेती हमेसा सिंग खुजियात फिरत रइथे जंगी के पतो।
दाई:- अरे चंपिया ! आज लहुंॅटही ता मुंॅड़ी ला मुरकेट के आगि मा दे दिंहा, दिन रात बेचाल होवत जात हवय, गांव मा आप तो ठेठर बैसकोप के गीत गवोइया पतो सबो आय बर लागिन हवय, कहूंॅ बइठ के बाजे न मुरलिया सिखत होही ह-र-जा-ई-ई। अरी चंपि-या-या-या।
जंगी के पतोः- कन्हिया मा मटका धरथे- चला ददिया चला! इ मोहल्ला मा पान के मेम रइथे, नी जाने दुपहर दिन अउ चैपहर रतिहा बिजली के बत्ती भक भक के जरत हवय।
सबो हांॅसथे
मखनी फुआ:- सैतान के मोमादाई।
सूत्रधारः- बिरजू के दाई के आंॅखि मा मानो कोन्हों तेज टारच के रोसनी डार के चैंधिया दिस, भक भक बिजली बत्ती, तीन साल पहिली सरवे कैंप के पाछू गांव के जलनडाही मइलोग मन एकठन कहानी गढ़ के फैलाय रिहिन, चंपिया के दाई के अंगना मा रतिहा भर बिजली बत्ती भुक भुकात रहे, चंपिया के अंगना मा नाक वाले पनही के छाप, घोड़ा के टाप साही। दाईः- जला जला अउ जला, चंपिया के अंगना मा चांदी जइसने पटवा सूखात देखके जलोइया सबो कोठार मा सुतओइया मईलोगमन धान के बोझा ला देख के भांटा के भुरता हो जाहा।
चंपिया गुर ला चाटत आथे, दाई थपड़ा मारथे।
चंपिया:- मोला काबर मारत हस, सहुआइन जल्दी सौदा नी दे एंे ऐं ऐं।
दाई:- सहुआइन जल्दी सौदा नी दे के मोमादाई, एक सहुआइन के दुकान मा मोती झरत हवय, जो जेरी जमा के बइठे रेहे। बोल ढेंटू मा लात देके नेरवा टोड़ दिहांॅ हरजाई, जो कभू बाजे न मुरलिया गात सुने, चाल सीखे बर जात हावस, टेसन के छोकरी मन सो।
बिरजूः- ए मइया एक उंगली गुर दे ना, दे ना मइया एक रत्ती भर।
दाईः- एक रत्ती काबर, उठाके बरतन ला फेक आत हों पिछवाड़ा मा, जाके चाटबे, नी बनही गुरतुर रोटी, गुरतुर रोटी खाय के मन होवत हवय।
उसनाय सक्करकांदा के सूपा ला चंपिया के आघू मा राखत,
बइठ के नींछ, नी ता आभी।
चंपिया:- मनेमन- दाई गारी दिही, पांय पसार के बइठे हर बेलज्जो।
बिरजूः- दाई महू हर बइठ के सक्करकांदा नीछों।
दाई:- नीही, एकठन सक्करकांदा नीछबे अउ तीन ठन ला पेट मा, जाके सिद्धू के बोहो ला कह, एक घंटा बर कराही मांॅग के लेगे हे, फेर लहंुटाय के नाम नी लेत हे, जा जल्दी जा।
चंपिया दाई ले नजर बचाके एकठन सक्करकांदा बिरजू कोति फेंक देथे। बिरजू जाथे।
दाई:- सूरूज नारायन बूड़गिन, दीयाबाती के बेरा हो गिस। आभी ले गाड़ी–।
चंपिया:- कोयरीटोला के मन कोन्हों गाड़ी नी दिन मइया, बप्पा किहिस हे तोर दाई ला कइबे, सबो ठीक ठाक करके तियार रिही, मलदहिया टोली केे मियाजान के गाड़ी लाय बर जात हवौं।
दाई:- कोयरीटोला के मन कोन्हों गाड़ी मंगनी नी दिन, ता फेर मिलगिस गाड़ी, जब आपन गांव के मनखेमन के आंॅखि मा पानी नीए, मलदहिया टोली के मियाजान
के का भरोसा, ना तीन मा , ना तेरह मा, का होही सक्करकांदा नींछ के। राख दे उठाके, इ मरद नाचा दिखाही, बैलागाड़ी मा बइठा के नाचा देखाय ले जाही, बइठ गे बैलागाड़ी मा, देख दारें जी भर के नाचा, रेंगोइया मन पहुंॅचके जुन्ना होगिन होही।
बिरजू:- कराही ला मुड़ी मा राखत- देख दिदिया, मलेटरी टोपी, ऐमा दस लाठी मारे मा कुछू नी होय।
चंपियाः- चुप।
दाईः- बागड़ ला भगात- काल तोला पंचकौड़ी कसाई के हवाले करत हवौं राक्षस तोला, हर चीज मा मुंॅहू लगाही, चंपिया बांध दे बगड़ा ला। छोर दे ढेंटू के घंटी ला, हमेसा टुनुर टुनुर, मोला एको नी सुहाय।
बिरजूः- झुनुर झुनूर बइला मन के झुनकी, तैंहर सुने–।
चंपिया:- बागड़ के ढेंटू के झुनकी छोरत- बिरजू बक बक झन कर।
दाईः- चंपिया, डार दे चुल्हा मा पानी, बप्पा आही ता कइबे, आपन उड़नजहाज मा चेघके नाचा देखे जाय, मोला नाचा देखे के सौक नीए, मोला जगाहा झन कोन्हों, मोर माथा पीरात हे।
बिरजू:- का दीदी, नाचा मा उड़नजहाज घलो उढ़ियाही।
चंपिया:- इसारा करत- चुपेचाप रह, मुफत मा मार खाही बिचारा।
बिरजूः- चुपेचाप- हामन नाचा देखे नी जान। गांव मा एकोठन चिरई घलो नी ए, सबो चल दिन ना।
चंपिया:- पलक मा आंसू आत हे, एक महीना पहिली ले मइया कहत रिहिस, बलरामपुर के नाचा के दिन गुरतुर रोटी बनही, चंपिया छींट के साढ़ी पहनही, बिरजू पंेट पहनही, बैलागाड़ी मा चेघके–।
बिरजूः- गाछ के सबले पहिली भांटा, जिन बोबा, आप मा चढ़ाहा, जल्दी गाड़ी लेके भेज दिहा जिन बोबा।
दाईः- पहिली ले कोन्हों बात के मंसूबा नी बांधना चाही कोन्हों ला, भगवान मंसूबा ला टोड़ दिस, ओला अबले पहिली भगवान ले पूछे बर हवय, ये कोन बात के फल देत हावा भोलेबाबा, आपन जीयत ओ कोेन्हों देवी देवता पित्तर के बदना नी
बांचे हवय, सरवे के समे जमीन बर जतका बदना बदे रिहिस। ठीक ही तो, महाबीर के बदना बांचे हावय, हाय रे देव, भूल चुक माफ करा बाबा, बदना दुगुनी करके चढ़ाही बिरजू के दाई, चोरी चमारी करोइया के बेटी नी जरही, पांच बीघा जमीन का हासिल करे हवय बिरजू के बप्पा हर, गांव के भईखई मन के आंॅखि मा कचरा पर गिस हवय, खेत मा पटवा लगे देखके, गांव के मनखेमन के छाती फाटत हवय, भुंइया फोर के पटवा लगिस हवय, बैसाखी बादर साही घूमड़त आत हे पटवा के पौधामन, ता अलान ता फलान, अतकी आंॅखि के धार भला फसल सहही, जिहांॅ पंदरामन पटवा होय बर रिहिस, उहांॅ दसेमन होइस, फेर तोल मा ओजन होइस रबीभगत के इहांॅ, इमांॅ जरे के का बात हवय, बिरजू के बप्पा हर तो पहिली कुरमाटोली के एकेक मनखेमला समझा क केहे रिहिस, जिनगी भर मजूरी करत रह जाहा, सरवे के समे आत हे, सो गांव के कोन्हों पुतखौकी के भतार सरवे के समे बाबू साहेब के खिलाफ खांॅसीस नीही, बिरजू के बप्पा ला कम सहे बर पड़िस हावय, बाबू साहेब रीस मा सरकस नाचा के बघवा साही हुमड़त रह गिस। आखिर बाबू साहब आपन सबले छोटे लइका ला भेजिस, मोला मौसी कहके बोलाइस, ये जमीन ददा हर मोर नांव ले बिसाय रिहिस, मोर पढ़ाई लिखाई ओई जमीन ले चलथे, अउ घलो कतका बात, खूबेच मोहेबर जानथे ओतका बड़ लइका, जमींदार के बेटा हवय, — चंपिया बिरजू सूत गिस का? इहांॅ आ जा बिरजू अंदर, तहूंॅ घलो आ जा चंपिया, भला मइनसे आही तो इ दारी,
दुनों आथे
चिमनी बुता दे, बप्पा बोलाही ता झन सुनिहा, खपच्ची लगा दे, भला मइनसे रे भला मइनसे, मुंॅहू देखा थोरकुन इ मरद के, बिरजू के दाई दिन रात साथ नी देथीस ता ले चुकिस जमीन, रोज आके माथा धरके बइठ जांय, मोला जमीन नी लेबर हवय बिरजू के दाई, मजूरी हर बने हवय, छांॅड़ दो जब तोर करेजा हर थिर नी रिही, ता का होही, जोरू जमीन जोर के, नीही ता कौनहों अउर के, बिरजू के ददा ला बड़ तेज ले रीस चघथे, चघत जात हवय, बिरजू के दाई के भाग खराब हवय, जे इसने गोबर गनेस गोसान पांय, कोन सोख मौज दिस हवय ओकर मरद हर, घानी के बैला साही खटत सबो उमर काट दें इकर इहांॅ, कभू एक पैसा के जलेबी बिसाके दिस हवय ओकर डउका हर, पटवा के दाम भगत ले लेके, बाहिरेच बाहिर बइला बाजार चल दिन। बिरजू के दाई ला एको घा नमरी लोट देखे घलो नी दिस आंॅखि ला, बैला बिसा लानिस, ओइदिन गांव मा ढिंढोरा पीटे लागिस, बिरजू के दाई इ दारी बैलागाड़ी मा चेघके जाही नाचा देखेबर। दूसर के गाड़ी के भरोसा नाचा देखाही।
अपने आप ले
अहू खुद घलो कुछू कम नीए, ओकर जीभ मा आगि लगे, बैलागाड़ी मा चेघके नाचा देखे के लालसा कोन कुसमे मा ओकर मुंॅहंॅू ले निकले रिहिस, भगवान जाने, फेर आज सुबे ले दूपहर तक कोन्हो न कोन्हों बहाना अठारा घ बैलागाड़ी मा नाचा देखाय जांहा किहिस हावय, ले खूब देखा नाचा, वाह रे नाचा, कथरी के तरी दुसाला के सपना, काल बिहनिया पानी भरे बर जब जाही, पतली जीभ वाली पतोमन हांॅसत आही अउ हांॅसत जाहीं, सबो जरत हवे इकरले, हांॅ भगवान दाढ़ीजार घलो, दू लइका के महतारी होके जस के तस हवय, ओकर गोसान ओकरे बात मा रइथे, वो चुंदी मा गरी के तेल डारथे, ओकर आपन जमीन हवय, काकरो करा एक घूर जमीन नीए इ गांव मा, जरही नीही, तीन बीघा धान लगे हवय अगहनी, मनखेमन बिख देबर बांचे तब ता।
बाहिर मा बैलामन के घंटी के आवाज आइस।
आपनेच बैलामन के घंटी हवय, का रे चंपिया?
चंपिया अउ बिरजू:- हूंॅ उंॅ उंॅ।
दाईः- चुपा, फेर गाड़ी घलो हवय, घड़घड़ात हे न?
चंपिया अउ बिरजू:- हूंॅ उंॅ उंॅ।
दाई:- चुपा, गाड़ी नी ए, तैं कलेचुप देखके आ तो चंपिया, भाग के आ चुपंचाप।
चंपिया:- हांॅ मइया, गाड़ी घलो हावय।
बिरजू हड़बड़ात उठ बैठिस, दाई ओला सुतादिस, बोले मत कहके, चंपिया गोदरी तरी सूत गिस, बाहिर मा बैलागाड़ी ला ढिले के आवाज आइस।
बप्पाः- हांॅ हांॅ, आगेन घर, घर आय बर छाती फाटत रिहिस। चंपिया बैलामनला ला कांदी दे दे, चंपिया।
बिरजू पांच मिनट ले खांॅसत रइथे।
बिरजू, बेटा बिरजमोहन, मइया रीस के मारे सूत गिस का, अरे, आभी तो मइनसे मन जातेच हवे।
दाईः- मनेमन- नी देखन नाचा, लहुंॅटा देवा गाड़ी।
बप्पाः- चंपिया उठत काबर नीअस, ले धान के पंचसीस राख दे,
धान के बालीमन ला ओसारे मा राखथे
दीया बारा।
दाईः- डेढ़ पहर रात के गाड़ी लाय के का जरूरत रिहिस। नाचा तो आप खतम होत होही।
बप्पाः- नाचा आभी सुरू नी होय होही, आभी आभी बलरामपुर के बाबू के कंपनी गाड़ी मोहनपुर होटल बंगला ले, हाकिम साहेब ला ले बर गे हावय, इ साल के आखिरी नाचा हावय, पंचसीस मिंयार मा खोंच दे, हामर खेत के हावय।
दाईः- हामर खेत के हावय, पाकगिस ना धान।
बप्पाः- नीही, दस दिन मा अगहन चढ़त चढ़त लाल होके नय जाही, सबो खेत के बाली मन। मलदहिया टोली मा जात रेंहे, हामर खेत के धान देखके आंॅखि जुरा गिस, सच कहत हों, पंचसीस टोरत मोर अंगठी कांॅपत रिहिस।
बिरजू हर एकठन धान ला लेके मुंॅहू मा डार दिस।
दाईः- कइसे लुक्कड़ हस रे, इ बैरीमन के मारे कोन्हों नेम धरम जो बांचे।
बप्पाः- का होइस, कड़कत काबर हस?
दाईः- नवा खाय के पहिली नवा धान ला जुठार दिस, देखत नीआ।
बप्पाः- अरे, इमन के सबो कुछू माफ हावय, चिरई चिरगुन ये येमन। हामन दुनों के मुंॅहू मा नवा खाय के पहिली नवा अन झन परे।
चंपिया:- धान ला दांत मा चाबके- अतका गुरतुर चाउर।
बिरजूः- अउ कहरत घलो हवय नी रे दिदिया।
बप्पाः- रोटी ओटी तियार हो गिस ना।
दाई:- नीही, जाय के ठीक ठिकाना नीए अउ रोटी बनाथे।
बप्पा:- वाह खूब ह, तुमन, जेकर मेर बैला हवय, ओला गाड़ी मंगनी नी मिलही का भला, गाड़ीवाला मनला कभू बैला के जरूरत होही, पूछिहांॅ, फेर कोयलीटोला मनला, ले जल्दी रोटी बना ले।
दाई:- बेर नी होही।
बप्पा:- अरे, टोकरी भर रोटी तैंहर पलक मारत बना लेथस, पांच रोटी बनाय मा कतका बेर लागही?
बिरजू:- मइया बेकार रीस करत रिहिस ना।
दाईः- चंपिया, जरा धौलसार ले ठाढ़ होके मखनी फुआ ला आवाज दे ना।
चंपिया:- फुआ- आ, सुनत हस फुआ, मइया बलात हवय।
मखनी फुआः- हांॅ, फुआ ला काबर गुहारत हस, सबो ओला मा एकेझिन फुआभर तो हवय बिना नाथ पगहिया वाली।
दाईः- अरी फुआ, ओ बेरा बुरा मान गे रेंहे, नाथ पगहिया वाले ला आके देखा, दूपहर रात मा गाड़ी लेके आय हावय, आ जाना फुआ, मैंहर गुरतुर रोटी बनाय नी जानों।
मखनी फुआः- खांॅसत आथे- एकरे बर घरी पहर दिन रहत पूछत रहेंव, नाचा देखे जाबे का? केहे रइथे ता पहिली ले आपन अंगीठी छपचा दे रइथे।
दाईः- घर मा अनाज दाना बगैरह ता कुछू नीए, एक बागड़ हवय अउ कुछू बरतन भाड़ा, सो रात भर बा इहांॅ तमाखू राख जाथों, आपन हुक्का ले आने हस ना फुआ।
मखनी फुआः- फुआ ला तमाखू मिल जाही ता रात भर का, पांच रात ले बइठ के जाग सकत हों। ओ हो हाथ खोलके तमाखू राखे हे, बिरजू के दाई हर, वो सहुआइन, राम कहा, ओ रात अफीम के गोली साही, एक मटर भर तमाखू राख के चल दिस गुलाब बाग के मेला मा अउ केहे रिहिस डिब्बा भर तमाखू हवय।
बिरजू के दाई चुल्हा छपचाय लागिस, चंपिया सक्करकांदा ला पिचकोले लागिस, बिरजू मुड़ी मा कराही ला राख के आपन ददा ला देखाथे।
बिरजूः- मलेटरी टोपी, एमा दस लाठी मारिहा तभू ले कुछू नी होय।
सबो हांॅसथे।
दाईः- तसका मा तीन चार बड़खा सक्करकांदा हावय, दे दे बिरजू ला चंपिया, बिचारा संझा ले –।
चंपियाः- बिचारा झन कह, मइया, खूबेच सचारा हावय, तैं का जानबे, कथरी के तरी
मुंॅहू काबर चलत रिहिस बाबू साहब के।
बिरजूः- ही ही ही बिलेक मारटिन मा पांच सक्करकांदा खा डारेन, हा हा हा।
सबो हांॅसथे।
दाईः- एकठन कनवा गुड़ हवय, आधा दांे फुआ?
मखनी फुआः- अरी सक्करकांदा तो अतका मीठा रइथे, अतका काबर डारबे?
बैलामन दाना कांदी खाके एक दूसर के देंहे ला चाटत हें, बिरजू के दाई तियार हो गिस, चंपिया छींट के साढ़ी पहनीस, बिरजू बटन नीए ऐकर सेती पटवा के डोर मा बंॅधवाय बर लागिस।
दाई:- अतका बेर का रेंगोइयामन रूके होही।
बिरजू के बप्पा बिरजू के दाई ला एकटक देखत हावय, मानो नाचा के पान के मेम। गाड़ी मा बैठिस ता बिरजू के दाई के देंहे मा अजीब गुदगुदी लागे बर लागिस।
दाई:- गाड़ी मा आभी बड़ जगह हावे, थोरे जवनी सड़क ले गाड़ी ला ले जाहा।
बिरजूः- उड़नजहाज साही उढ़िया बप्पा।
बप्पा:- रोवत सुनके- अरे जंगी भाई कोन रोवत हे अंगना मा?
जंगीः- का पूछत हस, रंगी बलरामपुर ले नी लहुंटिस हे, पतो नाचा देखे कइसे जाय, आसरा देखत देखत ओती गांव के जमो मइलोग चल दिन।
दाईः- अरी टीसनवाली तैं काहे रोवत हस, आ जा झट ले कपड़ा पहिरके, सारी गाड़ी परे हावय, बिचारी आ जल्दी आ।
सुनरी:- गाड़ी मा जगहा हावे, मैंहर घलो जाहांॅ।
लरेना के बीबी घलो आथे।
दाईः- जे बांचे हावा सबो आ जावा जल्दी।
तीनों झन आथे, बैला हर पीछू के पांय फेंकथे।
बप्पाः- साला, लात मारके खोरी बनाबे पतो ला।
सबो हांॅसथे।
दाई:- रोटी देत – खा लेवा एकेक करके, सिमराहा के सरकारी चुंआ मा पानी पी लिहा, अच्छा आप एक बैसकोप के गीत गा तो चंपिया, डरात हस काबर, जिहांॅ भूला जाबे, बगल मा मास्टरनी बैठिस हावे।
बप्पाः- चल भइया, अउ जोर ले, गा रे चंपिया, नीही ता बैला मनला धीरे धीरे रेंगे बर किंहा।
चंपिया:- चंदा की चांदनी—-।
बिरजू के दाई जंगी के पतो ला देख के सोचत हवय, गौना के साढ़ी ले एक खास किसिम के गंध निकलत हवय।
दाईः- मनेमन- ठीके तो किहिस हे ओहर, बिरजू के दाई बेगम हावे, येहर तो कोन्हों बुरी बात नीए, हांॅ वोहर सिरतोच पान की मेम हवय।
बिरजू के दाई के मन मा आप कोन्हों लालसा नीए, ओला नींद आवत हवय।

फणीश्वर नाथ रेणु की लालपान की बेगम कहानी से
एकांकी रूपान्तरण:- सीताराम पटेल