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कविता

कविता : बुढ़ापा

एके झन होगे जिनगी रिता गे रेंगे बर सफर ह कठिन होगे जिये बर अउ मया बर जीव ललचथे निरबल देह गोड़ लड़खड़ाते आंखी म अपन मन बर असीस देवथे हमर बुजुर्ग मन जेला बेकार अउ बोझ समझेंन एक ठन कोनहा ल उंखर घर बना देन सिरतोन म बुढ़वा होना बोझ हरे घर परिवार बर […]

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कहानी

नान कुन कहानी : ठौर

“मारो मारो”के कोलहार ल सुन के महुं ह खोर डाहर निकलेव।एक ठन सांप रहाय ओखर पीछु म सात-आठ झन मनखे मन लाठी धऱे रहाय। “काय होगे”में केहेव।”काय होही बिसरु के पठेवा ले कुदिस धन तो बपरा लैका ह बांच गे नी ते आज ओखर जीव चले जातिस”त चाबिस तो नी ही का गा काबर वोला […]