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गीत

कोनो ल झन मिलै गरीबी, लइका कोरी कोरी : रघुबीर अग्रवाल ‘पथिक’ के गीत

निचट शराबी अऊ जुवांड़ी, बाप रहै झन भाई। रहै कभू झन कलकलहिन, चंडालिन ककरो दाई॥ मुड्ड़ी फूटगे वो कुटुम्ब के, उल्टा होगे खरिया। बेटा जेकर चोर लफंगा, भाई हर झंझटिया॥ छानी के खपरा नई बाचै, वोकर घर के ठउका। निपट अलाल, शराबी होगे, जेकर घर के डउका॥ ओकर घर मं दया मया अऊ, सुमत कहां […]

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कविता

कबिता : नवा तरक्की कब आवे हमर दुवारी

अरे गरीब के घपटे अंधियारगांव ले कब तक जाबे,जम्मो सुख ला चगल-चगल केरूपिया तैं कब तक पगुराबे?हमर जवानी के ताकत लाबेकारी तैं कब तक खाबे?ये सुराज के नवा तरक्कीहमर दुवारी कब तक आबे?हमर कमाए खड़े फसल लगरकट्टा मन कब तक चरहीं?कब रचबो अपनों कोठार मसुख-सुविधा के सुग्घर खरही?कब हमरो किस्मत के अंगनासुख के सावन घलो […]

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कविता

चरगोड़िया : रघुबीर अग्रवाल ‘पथिक’

चारों खुंट अंधेर अघात। पापी मन पनपै दिन रात। भरय तिजौरी भ्रस्टाचार आरुग मन बर सुक्खा भात॥ रिसवत लेवत पकड़ागे तौ रिसवत देके छूट। किसम-किसम के इहां घोटाला, बगरे चारों खूंट। कुरसी हे अऊ अक्कल हे, अउ हावय नीयत चोर बगरे हवै खजाना, जतका लूट सकत हस लूट॥ कांटा गड़िस नहरनी म हेर। जम्मो दुरगुन […]

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कविता

रघुबीर अग्रवाल पथिक के छत्तीसगढ़ी मुक्तक : चरगोड़िया

छत्तीसगढ़ के माटी मा, मैं जनम पाय हौं।अड़बड़ एकर धुर्रा के चंदन लगाय हौं॥खेले हौं ये भुँइया मा, भँवरा अउ बाँटी।मोर मेयारूक मइया, छत्तीसगढ़ के माटी॥ छत्तीसगढ़ मा हवै सोन, लोहा अउ हीरा।हवैं सुर, तुलसी, गुरु घासीदास, कबीरा॥हे मनखे पन, अउ अइसन धन, तबले कइसन।चटके हवै गरीबी जस माड़ी के पीरा॥ कहूँ खेत के धान, […]

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कविता

चरगोड़िया

भूख नई देखय जूठा भात, प्यार (मया) नई देखय जात-कुजात॥ समय-समय के बात, समय हर देही वोला परही लेना कभू दोहनी भर घी मिलही, कभू नई मिलही चना-फुटेना। राजा अउ भिखारी सबला, इही समय हर नाच नचाथे, राजमहल के रानी तक ला, थोपे बर पर जाही छेना॥ बेटी के बर बिहाव, टीका सगाई मोलभाव, लेन-देन […]