घाम घरी आगे रूख-राई अइलागे। तरिया, नदिया सुखागे अउ कुंआ बोरिंग थर्रागे॥का बतावंव संगी,घाम के कहर।गांव-गांव, शहर-शहरहोवत हे हाहाकार॥भूख-पियास म मनखे के मुंहु चोपियागे।घाम घरी आगे, रूख-राई अइलागे।धू-धू जरत हवय,धरती दाई के कोरा।आगी अंगरा बरोबर घाम बरसावत हवय बेरा॥कोन जनि काबर इंद्र देवता रिसागे।घाम घरी आगे रूख-राई अइलागे॥सब जीव-जन्तु,हवय बड़ परसान रे।अपन परान ल हम,कइसे? […]
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