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गोठ बात

तडफ़त छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढिय़ा

कौशिल्या दाई अउ सृंगी रिसि के पौरानिक भुंइया अउ सिरीराम के करमभुंइया रेहे छत्तीसगढ़ ह अपन बहिनी राज मध्यप्रदेस संग चौवालीस बछर संग रेहे के बाद एक नवम्बर सन् 2000 के देस के छब्बीसवां राज के रूप म अलग होइस। देस के खनिज के 38 प्रतिसत भाग, 4.14 प्रतिसत भुंइया अउ जंगल, नदिया, प्राकृतिक सम्पदा […]

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कविता

काबर बेटी मार दे जाथे

कतको सबा,लता,तीजन ह मउत के घाट उतार दे जाथे देखन घलो नइ पावय दुनिया,गरभे म उनला मार दे जाथे बेटा-बेटी ल एक बरोबर नइ समझय जालिम दुनिया ह बेटा पाए के साध म काबर बेटी कुआँ म डार दे जाथे? काबर बेटी मार दे जाथे? नानपनले भेद सइथे बेटा ल ‘बैट’ एला ‘बाहरी’मिलथे काम-बुता म […]

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कविता

सुनिल शर्मा “नील” के दू कबिता : कइसे कटही जेठ के गरमी अउ हर घड़ी होत हे दामिनी,अरुणा हा शिकार

कइसे कटही जेठ के गरमी लकलक-लकलक सुरूज बरत हे उगलत हवय अंगरा बड़ेेफजर ले घाम उवत हे जरत हवय बड़ भोंभरा पानी बर हहाकार मचे हे जम्मो जीव परानी म कईसे कटही जेठ के गरमी दुनिया हे परशानी म तरिया-डबरी म पानी नइहे नदिया घलो अटागेहे पारा के पारा चढ़गेहे ,रुख-राई मन अइलागेहे मनखे घरघुसरा […]

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कहानी

नान्हे कहिनी: धन होगे माटी(अनुवाद)

एक दिन कुम्हार ह माटी ल सानके चिलम बनावत रहिसे। चिलम बनावत-बनावत जाने कुम्हार ल काय सुझिस कि ओहा ओ चिलम ल मिझार दिस अउ ओ माटी ल सानके चाक ऊपर चढ़ा के मरकी बनाय लागिस। चाक ऊपर माटी ल चघाएच रिहिसे कि माटी बोले लागिस-“मेहा माटी बनके धन-धन होगेव कुम्हार बाबू तोर जय होवय”। […]

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कविता

बजारवाद के नाला म झन बोहावव

मिरिग मरिचका ल पानी समझके झन ललावव, अंधरा बन ‘बजारवाद’ के नाला म झन बोहावव. नई होवय गोरिया चाहे कतको चुपर फेरन लबली सब ल बतावव, 3 दिन म चंदवा के चुंदी जागही, रेटहा मोटाही झन पतियावव, अरबो रूपिया लूटत हे झूठ अउ भरम के कारोबार म, एखर चक्कर म पछीना के कमइ ल झन […]

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कविता

दाई

जिनगी के पहिली भाखा, सबले सजोर साखा आवस दाई| अंधियार म उजास, जेठ म जुड़ हवा के अभास आवस दाई| बंजर म उबजैया बीज, हर नजर ले बचैया ताबीज आवस दाई| ममता के ऊंच अकास, लईका के अटूट  बिश्वास आवस दाई| सागर कस बिशाल, चन्दन,चाऊर,रोली,गुलाल आवस दाई| सावन के पहली पानी, त्याग अउ ममता के […]

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कविता

वइसन बिहनिया अब कहाँ होथे

होत बिहनिया कुकरा नरियावय रुख म बइठ चिरई-चिरगुन गावय ‘रामसत्ता’के मिसरी कान म घोरावय घर-घर रेडियो रमायन सुनावय मंदिर के घंटी मन ल लुभावय वइसन बिहनिया अब कहाँ होथे? नांगर धर किसान खेत जावय गरुवा बरदी जावत मेछरावय घर-घर अँगना चऊँक पुरावय दीदी बोरींग म पारी लगावय बाबू नहा धोके संख बजावय वइसन बिहनिया अब […]

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कविता

जय सिरजनहार, जय हो बनिहार

पहार काट के रद्दा बनइया भुइंया ले पानी ओगरइया भट्टी म तै देह तपइया ईंन्टा-पखरा के डोहरैया खदान ले कोइला निकलइया बिल्डिंग अउ महल के बनइया तभो ले ओदरे घर म रहइया तै बिस्करमा के सन्तान जय सिरजनहार,जय हो बनिहार अंगरक्खा के तेहा धरैया धोती-बनवई के पहनइया दू जोड़ी बंडी म मुस्कइया चटनी अउ बासी […]

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कविता

वा बहनी उर्मिला कमाल कर देस

वा बहनी उर्मिला  कमाल कर देस दारु के बिरोध कर कड़ा संदेस दे देस नै करेस जिनगी के सौदा बिहाव करके भारत के नारी मन म हिम्मत भर देस वाह बहनी उर्मिला…………….. फेरा नै रेंग सकय तऊन का साथ देतीस सुग्घर भविष्य के तोला का बिश्वास देतीस नरक ले बद्तर जिनगी हो जतीस तोरो कुरीति […]

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कविता

जिनगी के का भरोसा

जिनगी के का भरोसा कब सिरा जही तेल के बढ़ात देरी हे दीया बूता जही दुःख-सुख म सबके काम आ रे मनखे इहि जस तोर चोला ला सफल बनाही झन अकड़बे पइसा के गुमान म कभू समय के लाठी परही त सब बदल जही एखर थपेड़ा ले धनमान होथे कंगला किरपा होहीे त कंगला, धनमान […]