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कविता

जय सिरजनहार, जय हो बनिहार

पहार काट के रद्दा बनइया
भुइंया ले पानी ओगरइया
भट्टी म तै देह तपइया
ईंन्टा-पखरा के डोहरैया
खदान ले कोइला निकलइया
बिल्डिंग अउ महल के बनइया
तभो ले ओदरे घर म रहइया
तै बिस्करमा के सन्तान
जय सिरजनहार,जय हो बनिहार
अंगरक्खा के तेहा धरैया
धोती-बनवई के पहनइया
दू जोड़ी बंडी म मुस्कइया
चटनी अउ बासी के खवइया
सबले गुरतुर गोठ बोलइया
खान्ध में रापा-गैती अरोईया
सबके घर म अंजोर करइया
खुद चिमनी म रतिहा बितइया
तोर कारज हवय महान
जय सिरजनहार,जय बनिहार
अतियाचार शोषन के सहइया
आश्वाशन के चटनी चटइया
भाषन भर म पेट भरइया
तभो 5 साल रद्दा जोहइया
अभाव म जिनगी ल जियइया
कभु कोनो ल कुछ न कहइया
तय गरुवा कस इनसान
जय सिरजनहार,जय भगवान

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सुनील शर्मा “नील”
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
रचना-01/05/2015

2 replies on “जय सिरजनहार, जय हो बनिहार”

मजदूर बनिहार के बने बरनन करइया
सबके अंतस के बात बतइया जय कविराज |
सुनील शर्मा जी आपके कविता बड़ सुघ्घर लागिस | मोर डाहर ले बधाई हो |

महेन्द्र देवांगन भइया”माटी”…….आपमन ल गाड़ा2 धन्यवाद…आपके मया बनाय राखहू……जय जोहार-जय छत्तीसगढ़

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