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सुरता

कविता के थरहा- विसम्भर यादव ‘मरहा’

(सुरता ‘मरहा’ के) अवसान दिवस 10-09-2011

बिना पढ़े-लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुंह अखरा होना बड़ अचरज के बात आए। येला माता सरसती के किरपा अउ कवि के लगन, त्याग-तपसिया अउ साधना के परिनाम केहे जही मंच मं खड़ा होके सरलग 8-10 घंटा कविता पाठ करना कउनो हांसी-ठट्ठा नो हे। फेर ‘मरहा’ जी हा ये रिकार्ड बनइस तहां ले कई जघा ‘मरहा’ नाइट के आयोजन घलो करे गिस। बच्छर के 365 दिन मा 300 दिन कवि सम्मेलन के मंच मा रहय। ‘मरहा’ जी हा कतको धारमिक, अध्यात्मिक अउ सामाजिक आयोजन मा अकेल्ला कविता पाठ करय। तकरीबन 60-65 साल के उम्मर तक साइकिल के केरियल म बेग ला दबा के पूरा छत्तीसगढ़ ला घूमे रिहिस। कभू पइसा कउड़ी के बात नइ करय। तारिक वाले पाकिट डायरी ला जेब म रखे रहय, साल भर के एडवांस बुकिंग चलय। सरल, सादगी जिनगी, नसा पानी ले कोसों दूर, चाय तक ला घलो न पियय। एकरे सेती दांत कान अउ आंखी हा जियत भर ले सलामत रिहिस। मंच के प्रस्तुति अइसन रहय के कउनों सुनइया असकटावय नहीं अउ टस ले मस नई होवय।
मरहा के कविता मा हांसी-ठट्ठा के लहजा देखे ला मिलथे तेखरे सेती सुनइया मन हांसय अउ त थपड़ी पिटय। कविता के भाव के संग मरहा जी हा एकसन मिलावय कवि अउ श्रोता के तार सरलग एके मा जुड़े रहय। कविता रचे के पाछू एकेच ठन सोच रिहिस समाज सुधार के, फेर जर बुखार ला टोरे बर कुनेन खवाय के पहिली मंदरस चटाय बर परथे। वइसनेच बियंग के ठोसरा मारे के पहिली गुदगुदावय अउ हंसवावय। ओखर कविता नानकुन लइका ला ले के बुढ़वा सियान तक बर रहय। कविता पाठ शुरू करे के पहिली गायत्री मंत्र अउ माता सरसती के वंदना करय। लइका मन बर बाजा मनखे गोठ-बात कविता मा तमूरा तार के आवाज गजब ढंग ले निकालय जे ला सुन के सब हांसी के मारे सब लोट-पोट हो जांय। घर-परिवार, सास-बहू, बेटी-बेटा, राजा-परजा, परोसिन-मितान के हूबहू दरसन मिलथे। चारा अउ मछरी के गोठ बात जइसन रचना के माध्यम ले मनखे ला सुधरे अउ लोक-परलोक बनाय के सीख देवय। केहे जाथे सियान मन के चुंदी हा घाम मा नहीं बल्कि तजुरबा अउ अनुभव मा पाकथे। अपन सपूरन जिनगी के अनुभव ला कविता मां बांटय। येदे रचना मा ऐ बात के झलक देखे बर मिलथे। नाचा वाले ला अवघट मा तीन झन चोर मन छेंक लिस, ऊंखर मोटरा-चोटरा ला खोधिया के देखिस कुछु माल-मत्ता नइ मिलिस त खिसिया के बंदूक ला टेका के नाचे बर किहिस। जीव के डर मा नाचा वाले मन नाचे ला लागिन फेर नौ झन नचइया अउ तीन झन देखइया कहां ले मजा आही जोक्कर, मनिार हा बड़ हुसियार रिहिस ऐ बिपत्ति ले निपटे के उदिम सोचि अउ साखी बनाके बोलिस-
तबला बाजे धिन-धिन मंजीरा बाजे किन-किन
एकेक झन ला तिन-तिन, एकेक झन ला तिन-तिन॥
नाचा वाले मन इसारा ला समझ के एकेक झन चोर ऊपर तिन-तिन झन झुमीन अउ उंखर छति-गति ला करिन। देसभक्ति कविता ला पढ़य त सुनइया मन के रुआं ठाढ़ हो जाय। सैकड़ों बलिदान शहीद मन के लयबध्द सरसपाट बोल ला सुनके सांस रूके असन लगे खून खउल जाय। देस के माटी बर जिये अउ मरे के गोठ ला बहुत असरदार ढंग ले करे फेर भ्रस्टाचार के खिलाफ नेता मन ला अनुसासित अउ सिस्ट ढंग ले बेखौफ दहाड़े। काखरो डर तरास नइ घेपय (पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक बइमान हे) अइसे कहय अउ चैलेंज करे। मेहा गलत बोलत होहूं त मोला जेल भेजवाव। ‘मरहा’ ओखर उपनाम हरय जउन हा जादा प्रचलित होगे केहे जथे जथा नाम तथा गुन, दुबर-पातर देंह हा ‘मरहा’ के नाम मा सउंहत फभे, ‘मरहा’ जी अपन कविता मा भ्रस्टाचारी परखत्ता मन ला सांड़-गोल्लर के संगिया देय अउ सदाचारी जीवन बितइया आमजन जेन हा लुट अउ सोसन के सिकार होथे ओखर प्रतिनिधित्व ‘मरहा’ करथे। जेखर सेती हमर छत्तीसगढ़ के महान संत कवि पवन दीवान हा टेमरी गांव के एक कवि सम्मेलन के मंच मा बिसम्भर यादव के कविता ‘मरहा के आंसू’ ला सुन के ओखर टाइटिल ‘मरहा’ रखदिस अउ ऐ जन कवि हा ‘मरहा’ के नाम ले जग जागरित होगे। मोला मरहा जी के संग कवि सम्मेलन के डेढ़ सौ मंच मा संघरे के मउका लगे रिहिस संचालन करत मंच मा आवतरित करंव त ओखर सम्मान मा बोलंव-
गोल्लर कस भुकरत हे चर-चर के हरहा।
देख-देख के रोवत हे का करे जी ‘मरहा’॥
मरहा हे त का होइस जीये के तो दम हे।
दूसर खातिर जीयत हे त गोल्लर से का कम हे॥
सही मायने मा समाज के पीरा ला गोहरइया जनहित बर जियइया हा बहुत बड़े माने जाथे। सादा जीवन उच्च विचार ला आत्मसात करे रिहिस। ब्रह्मलीन स्वामी सुजनानंद जी महाराज विमल वैदिक सेवा आश्रम पैरी के सानिध्य पाके समाज सुधार के बीड़ा उठाय के संकल्प लेइस अंचल मा अइसे कउनो बिदवान साधु संत महापुरुस नइ बांचे हो ही जेखर संगति नइ करे रिहिस कवि के साथ-साथ जाने-माने रंगकरमी घलो रिहिस। ‘चंदैनी गोंदा’ अउ ‘कारी’ लोक नाटय मा जेखर अभिनय देखे ला मिलथे संतोसी सदा सुखी ओखर जीवन के मूलमंत्र रिहिस। बहुत कम साधन मा जीवन गुजारे के प्रयास करय। सादा धोती-कुरता के संग हाफ जाकिट जेमा सम्मान मा मिले मेडल मन ला गुथे रहय जे हा ओखर बिसेस पहिचान रहय। जउन घर मा ठहरय उहां के बहू-बेटी संग गोठियाय-बतियाय अउ असीस देय बिना उहां ले नइ टरे। कवि भाई मन ले पारिवारिक नत्ता जोड़य, दुख-सुख के चिंता करय। अवसान के एक महिना पहिली ओखर घर मा मुलाकात करे बर गे रेहेंव। उठे-बइठे के गतर नइ रिहिस खटिया म सुते-सुते किहिस इच्छा मृत्यु होतिस त मय मर जातेंव जिये के साधन नइ हे फेर भीष्मपितामह ला इच्छा मृत्यु रेहे के बाद घलो बान के सइया मा सुते ला पड़ीस। मोर संतान नइ होय के ओला घात चिंता रिहिस मोर हाल-चाल पूछिस त बताय हों कि नवा संग अवइया हे त तपाक ले पूछिस नोनी हरे ते बाबू मय केहेंव आने वाला हे। आसीरबाद देबे तभे सरग जाबे। तारीख 3 अगस्त 2011 सनिच्चर के रात 9 बजे मोर घर बेटा जन्मीस, उही अठोरिया सन्निचर 10 अगस्त 2011 के रात 9 बजे 80 बरस के उमर मा परलोक सिधारिस।
नाम्ही साहित्यकार मन घर मा जाके आखरी भेंट करीन अउ दुख के बेरा मा उंखर परवार ला ढांढस बंधइन। काठी मा गांव वाले अउ सगा सोदर संग कवि मन घलो संघरे रिहिन जिहां देखे बर मिलिस, दू-तीन बच्छर के जुन्ना आदमकद के बर रूख ला गमला सुध्दा उठाके मरघट्टी मा लेगे रिहिस, जउन ल कांटा मा चमचमा रूंधा करके जगोइन। मर के घलो मनखे ला रूख लगाय के संदेस दिस। जियत ले घूम-घूम के उपदेस बांटिन अउ अपनो ऊपर घलो लागू करिस। ये हा समाज बर बहुत बड़ सीख आय। निमगा ग्यान बंटइ के कउनो मोल नइ हे। वो गियान ला अपन आचरन मा उतारना घलो जरूरी रहिथे। मरहा जी के जिनगी मा ये बात परगट रूप ले दिखथे। का भइस ओखर जिनगी के दिया हा सुन्ना मा बुतागे। समाज अउ सरकार डाहर ले जादा सोर-गोहार नइ करिस, फेर मोला पक्का बिसवास हे कि उंखर सिरजे कविता के एक-एक सब्द, एक-एक बोल हा समाज मा अंजोरी बगराके जम्मो मइनखे ला बने रद्दा देखाही।

केशव राम साहू
गुण्डरदेही, बालोद