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कहानी

कहिनी : फंदी बेंदरा

सतजुगहा किस्सा ये, ओ पइत मनखे जनावर अउ चिरई-चिरगुन, सांप डेंड़ू, सबे मन एक दूसर के भाखा ओखरे बर जानंय।

अपन अपन रीत रद्दा म चलयं। एक दूसर के सुख-दुख म ठाड़ होवय। सबे बर अपन भाखा हर सबले आगर अउ ओग्गर माने जावय। भाखा अउ किरिया तो जियई-मरई के ताग माने जावय। तभो ले कतकोन नवटिप्पा लंदी-फंदी घला राहंय। उही जुग म एक ठन जंगल मं लंदी-फंदी बेंदरा राहय। नांव कबे ते भुस्क वोहर आनी-बानी के हाना, ठिठोली, जनउला, चाखना अऊ ठोली-बोली ल अकताहा राहय। जौन एक बेर ओकर लाटा फांदा मं फंदे तौन हर जीयत भर बर कान चाब लेवय।
ओकर मयारू लगवार रिहिस लजकुरहिन सतवंन्तिन बेंदरी भुस्की। जेन हर सातो जनम बर भुस्का ला अपन खेवनहार माने रिहिस। दूनो के मया-पीरा जांतर जोंही कस चलत रिहिस। एक दूसर के रीत रहन, करू-कस्सा सुहागेय रिहिस। दूनों एक दूसर बर कुछू घला करे के दांव राखंय। अइसने एक मन के आगर जीयत खात रिहिन। गंज दिन ले ओमन सुने रिहिन, झिंथरू केंवट के बखरी म घातेच मीठ बोइर रूख हे गुदाल वाला। भुस्की-भुस्का सुन्ता बंधाके एक दिन उहीकोत निकलिन। रद्दा म भुस्की के पांव पखरा म छोलागे। वोहर रूख म चढ़हे नी सकिस। भुस्का बेंदरा चढ़िस अउ मुसुर-मुसुर मीठ-मीठ बोइर खावत राहय। भुस्की पन्छावत, चुचुवावत जतका केलोली करय ततके भुस्का मेंछरावय, बिजरावय, अउ कुला मटकावय भुस्की बपरी लार चुहकत बइठे राहय।
ताहन बेंदरा ला ठिठोली चढ़गे। अपन धन्नो भुस्की ला छकाय बर, बोइर खा-खा के गुठली ला भुस्की ऊपर फेंकत जाय। भुस्की आखी-पाखी बांहकत जाय, खिसोरत राहय। तसने म एक ठन गुठली भुस्की के नाक मं खुसरगे। भुस्की हाय हुदुर छटपटाय धरलीस। गुठली निकाले बिना नई बनय। अइसे जान के भुस्का ओला नाऊ करा लेगिस अऊ तांय-फांय गोहराईस। नाऊ किहिस- ‘देख भई, गुठली निकालत कहूं बेंदरी मर गे तब? मय ओकर ठेंका नई लेय संकव’ बेंदरा मान गे ‘जौन होही, देखे जाही, तैं तो निकाल बबा’ नाऊ हर बने जोगासन ले चिमटा म गुठली ला खोधर के निकाले धरिस। गुठली भीतरी खुसरगे बेंदरी मर गे। ताहन बेंदरा रिसागे- दांत खिसोरत कथे- मोर बेंदरी दे नी ते चिमटा दे।’ नाऊ के एको नी चलिस। चिमटा देय बर परिस।
चिमटा धरके भुस्का आघू कोत रेंग दीस। रद्दा म एक झन कुम्हार हर दांत म मांटी कोड़त राहय। बेंदरा कथे- ‘यहा काय कुम्हार भइया? भोभला बने के उदीम काबर करत हवस जी। ये दे चिमटा हे, येमा माटी कोड़ ना।’
‘नी ही बबा, राहन दे, चिमटा टूट जाही ताहन कहा ले पाहूं?’
‘अरे भइया तोर दांत ले मांहगी, चिमटा नी होय गा। दांत हे ते परान हे जी, टूट जाही तो टूट जाय साले हर ओकर का हे।’ बेंदरा किहिस। कुम्हार मगन होके चिमटा म माटी कोड़िस चिमटा टूटगे। बेंदरा तो फंदोय बर फांदा फेंके राहय। चिमटा मांगे धरलीस। कुम्हार सरेखिस- ‘तैं तो नई मांगो कहिके जोजियाय रेहे जी।’ त बेंदरा कथे- ‘ले भई चिमटा के बल्दा हंडिया दे दे।’ कुम्हार हर हंड़िया दे दिस। तेला धरके बेंदरा चल दीस। आधा कोस गीस होही, त का देखथे? एक झन राऊत हर पनही मं दूद दुहनी राहय। बेंदरा कथे- ‘अ गा, राउत भइया, यहा का अलपटहा बुता करथस भई। पनही मं दूद झोंकत हावस। ये ले हंड़िया, येमा दूद झोंक…।’
राउत एक मन आगर होके हंडिया मं दूद झोंके धर लीस। नंगते दूद भरही। पोट्ठ पइसा मिलही सोंचत राहय। तसने मं गाय हर छटारा मारिस। हंडिया फुटगे। दूद छरियागे। राउत के मांडी झनझना गे। बेंदरा तनतनागे- ‘सोज बाय मोर हंड़िया दे दे, नइते बुता बना डारहूं तोर।’ मिंदी टेंड़वा के दांत खिसोर दीस। राउत के तीन तिलिख झकगे। हाय बासा जनम अबुजहा रहिगेंव भगवान ‘मने मन घोखिस’ बेंदरा ला पहिली ले खंधोय नी पायेंव। अब काला देवंव? नोई, गेंरवा, पनही, छितौरी मन ला दीस ते बेंदरा नई मानिस। हार खाके राउत कथे- अउ तो कुछू नइये जी, डीडी-छिंडी डैकी-डउका हावन, मोला लेगबे ते डैकी ला? बेंदरा ओकर डैंकी लेगे बर तियार होगे। राउत सोंचिस बनिस बिया ला, एक ठन कलउर उसरिस। बंगबंगही गतर हर रात दिन तनातना झगरा करय बने होइस। ओती सांगर मोंगर राउताईन डैकी पाके भुस्का हुलक मान होवत, मेंछरावत जात रिहिस।
रद्दा मं एक ठन बस्ती मिलिस। जिहां के होटल मं बिलई हर भजिया बरा रांधत राहय। बेंदरा कथे- ‘अजी, होटल वाला सेठ यहां का बात ए भई? बिलई हर रांधत-गढ़त हे ये दे मोर करा मुटियारी डैकी हे। येहर तोर जमें रंधवारी कर दीही।’ त होटल वाला किहिस- नीही बोबा राहन दे, बिलईच बने हे। तोर डैकी कहूं मर जाही, ताहन कहां ले पुरोहूं? बेंदरा कथे- ‘दई किरिया, सेठ ददा किरिया, कुछू होय, डैकी नी मांगव।’ होटल वाला मने मन गदकगे डैकी जात देखके कतकोन उपराहा लेवाल आहीं-जाहीं। अइसे सोंचके राख लीस। डैकी भजिया रांधे धर लीस। नून चटनी के खवइया राउताईन बपरी भजिया रांधे बर का जाने? भजिया जरे ल धरिस डैकी अकबकागे। का करंव का नी करंव, धरा पसरा कराही ला उतारत रिहिस। बिछलगे। जम्मा तेल ओकरे ऊपर झलकागे। अइंठ के मरगे बपरी। ओती बेंदरा बउछागे, दांत कटरत किहिस- ‘तोर रंधवारी करत मोर डैकी भुंजाके मर गिस सेठ। मोर डैकी दे दे सोजबाय।’ होटल वाला घला खखवागे- ‘हुसियारी झन बघार बेंदरा, दुई टैमपा बजाहूं, ते पूछ आबे तोर बाप ल चलवंता साले, तोला पहिली चेताय रेहेंव, तीहीं झपाय हवस। अब डैकी कहां ले लानहूं? ओकर पल्टी म कुछू लेगबे ते लेग जा।’
‘का होइस त बनही न भई, डैकी के बल्दा मोला हलवा, पुड़ी, बरफी, जलेबी दे दे सेठ।’ बेंदरा थोरिक कपसत किहिस। होटल वाला सोंचिस धमकायेंव त सस्ता म निपटगे। डलिया भर पुड़ी, मिठई दे दीस। तेला बोही के बेंदरा जंगल कोती जावत रिहिस। ओतके बेर तरिया पार के रूख तरी थेभा मारत रिहिस। ओत के बेर बरतिया गोहड़ी, नावा दुलही ले के आवत राहंय। ओमन घातेच थके अऊ भुखाय राहंय। हंफरत, डांहकत आईन अऊ सपर-सपर पानी पीइन। रूख के फर टोर-टोर के खाय धर लीन। तेला देखके भुसका कथे-
‘संसो झिन करव दऊ हो, यहां दे हलवा-पुड़ी हे, छकत ले खाव, मैं तो तुंहरे अगोरा म रेहेंव।’ त एक झक सियान मुड़ी कथे- ‘कस गा, कहूं अइसे तो नइ होही? पुड़ी-मिठई खवाके हमला कुछू मांगबे?’
‘का किथस सियान।’ बेंदरा नीचट सोजहा बनगे- ‘मोर कस धरमी चोला बर अइसन बात नई फबै दऊ जी। अरे भई तुमन भुखाय हो, अऊ मोर करा जेंवन हे भाग जाने तुम हम मिलेन रे भई। मया के रद्दा चतवारे बर बिधाता हमला मिलाय हे। इही परछो ला जानव सियान हो लेव खाव-खाव हरहिन्छा खाव।’ सब झन छकत ले खई-पीइन ताहन बेंदरा अपन सुर बदलिस- ‘मोर पुड़ी, मिठई देवव, अभिच्चे देवव, कहि घोरन मतईस। एती-ओती के गोठ करिन ताहन ककरो नाख, कान, चेथी चीथै, ओनहा चीरै। जोरा-जंगारा ला तरिया मं फेंकत जावय- जल्दी लानो पुड़ी-मिठई।’ सब हलाकान होगें। छिदिर- बिदिर भागे धर लीन। तब बेंदरा कथे- ‘लेव हटाव, जेवन के बल्दा लाल परी दुलही ला देव।’ सुन के सब ठाड़ सुखागें। पागा बांध के मेंछा अंटिया के बहू बिदा करवा के लानत हवन- अध बीच म बेंदरा ला कइसे सोंपन?
ऊंकर गुनुन मुनुन देख के बेंदरा अऊ उतलंग मचाय धरिस। हरान खाके नेवरनिन दुलही ला सौंपिन। तभे बेंदरा थिराईस। लालपरी धरके जंगल कोती चल दीस। बहुत झन जानथे आन डेरा जाके भुस्का प्रसाद फंदी हर काय-काय करिस होही? तेला नान्हे कहिनी बनाके भेजव।


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