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गोठ बात

गरमीं के छुट्टी मा ममा गाँव




कलकूत गरमी मा इस्कूल मन के दु महीना के छुट्टी होगे हे। अब फेर इस्कूल खुलही असाढ मा। लइका मन मा टी.वी.,मोबाइल, कंप्यूटर, लेपटाप, विडियो गेम, देख-खेल के दिन ला पहाही अउ असकटाही घलाव। एकर ले बाँचे बर दाई-ददा मन हा गरमी के छुट्टी बिताय खातिर कोनो नवा-नवा जघा मा घुमे जाय के उदिम करहीं। कोनो पहाड़, कोनो समुंदर , कोनो देव-देवाला अउ कोनो पिकनिक वाले जघा मा जाँही अउ सुग्घर समे बिता के आहीं। ए हा अच्छा बात हे के नवा-नवा जघा देखे अउ घुमे ला मिलही,ओखर बारे मा जाने-समझे के मउका घलाव मिलही। फेर ए दरी लइका मन के संग हम सबो झन अपन-अपन दादा-दादी अउ नाना-नानी के घर गरमी छुट्टी बिताय ला चलीन। मोर गोठ कोनो आरूग अउ नेवरिया गोठ नो हे फेर ये हा समे के माँग बनत जावत हे। पहिली के समे मा गरमी छुट्टी के मतलब हा कका-ममा के गाँव जवई होवय। सबले जादा लइका मन सधाय रहंय के कब गरमी के छुट्टी लगही अउ तुरते ममा गाँव जाबो।
गरमी के छुट्टी हा हमर दिन-रात एकसुरहा जीवन शैली ले थोरिक बिसराम लेके नाँव हरय। कुछू नवा करे के समे हरय। अइसन मउका मा हमन काबर कुछू नवा करे के जघा मा अपन जरी ले जाके मिले के सुअवसर ला गवाँईन। एखरे सेती लइका मन के संगे-संग हमु मन ला संघरा अपन सियान मन के आसिरबाद अउ अनुभव के मोती पाय बर ए दरी गरमी के छुट्टी मा कका-ममा गाँव चलीन। लइका मन तकनीक के आय ले अपन सरी संसार अपन एकठन नान्हें खोली ला समझे लागथें। संसार के सरी जिनिस के गियान अउ दरसन उन्ला एक बटन दबाय ले हो जाथे। उंखर इही भरम ला टोरे खातिर पुरखा मन के गाँव-गंवई बच्छर मा एक बेर जरुर जाना चाही। आजकाल के लइका मन ला नहर, नंदियाँ, तरिया, कुआँ,पहाड़, खेत-खार, बारी-बखरी, बगीचा ए सबके सउँहत दरस करे खातिर ममा गाँव जाना चाही। अइसन ला देखे ले,इंखर ले खेले ले गजब मजा आही लइका मन ला। एक बेर आय ले घेरी-बेरी इहेंच आय के ओखी खोजहीं। परकीति ला छु-टमर के देखहीं अपन सवाल के जवाब घलो पाहीं। इंखर जिनगी मा का महत्तम हे एहू ला बने लकठा ले जानही। एखर रक्छा अउ संरक्छन काबर जरुरी हे एहू ला गुनहीं। कुल मिलाके तकनीक के संगे-संग अपन परियावरन अउ परकीति ले घलाव जुङ पाहीं।
गरमी के छुट्टी मा अपन पुरखा के गाँव जाय के सबले कीमती अउ जबर फायदा हे अपन परवार,अपन दादा-दादी अउ नाना-नानी ले भेंट करई। ए मन हा गियान अउ अनुभव के खजाना होथे जेखर लाभ हमन ला सोज्झे मा मिलथे। गाँव परवार मा जाय ले कका-काकी, बुआ-फुफा, बङे ददा-दाई ,ममा-मामी अउ इंखर लोग-लइका ले मेल-मिलाप होथे। अइसन जघा मा मान अउ मया भरपुरहा मिलथे जेखर सुरता जिनगी भर नइ भुलावय। आजकाल के उत्ता-धुर्रा भरे जिनगी मा बने ढंग के अपन बाप-महतारी अउ भाई-बहिनी भर ला जान पाथे अउ बाँकी नता-गोता परवार ला टीवी मा देखथे-सुनथे। गरमी के छुट्टी हा हमला सोनहा मउका देथे के अपन परवार ला काम-बुता ले समे निकाल के समे देइन अउ उंखर बीच मा रहीन। लइका मन ला तो बिक्कट मजा-मस्ती, मया अउ मान मिलथे अइसन जघा मा जाके। परवार के मया महत्तम समझ मा आथे। दिनभर बदमासी अउ मस्ती ममा गाँव मा लइका मन के चिन्हारी बनथे। बाग-बगीचा मा आमा-अमली टोरई अउ तरिया-नंदिया मा दिन भर डुबकई गाँव-गंवई मा ही होथे अउ कहूँ नहीं।
परवार मा संघरा रहे के नेंव परथे लइका मन के मन मा। जुरमिल के बुता-काम अउ जिमेदारी ला निभाय के सीख एकमई परवार ले लइका मन ला मिलथे। सब मा सहजोग के सुग्घर भावना के दरस होथे। गाँव मा सादगी,सफई अउ सुद्ध जीनिस के भरमार होथे। हवा,पानी के संगे संग मया-दुलार मा कोनो परकार के कोनो मिलवट नइ रहय। बिन तकनीक के, बिन बङे-बङे सुख-सुबिधा के असल अराम कइसे गाँव के जिनगी मा होथे एला देखे-सीखे के मउका गरमी के छुट्टी मा ही मिल सकथे। अपन भाखा, अपन बोली,अपन रीति-रिवाज, तीज-तिहार,परमपरा अउ मान्यता के साक्छात दरसन होथे। ए सब जिनिस हा लइका के जिनगी मा बङ भारी बदलाव ला सकथे। लइका के सोंच अउ समझ हा बिकसित होथे। अपने घर-परवार अउ जरी ले जुरे के समे मिलथे। अपन दादा-दादी, नाना-नानी ले गियान अउ अनुभव के बीज मंतर पाय के इही बेरा होथे। किसा-कहिनी के अथाह सागर होथे ए सियान मन हा। इंखर ए सरी वो जरुरी जानकारी मिलथे जौन जिनगी जीये बर बङ जरुरी होथे। जिनगी के मीठ अउ करू अनुभव ला अपन सियान मन ले सीखे के बेरा गरमी के छुट्टी मा ए दरी झन गवावव। घुमे-फिरे के संगे-संग जिनगी के नीक अउ गिनहा गोठ के गियान अपने सियान ले मिलना सोना मा सोहागा जइसन बात हरय। हमला अइसन कोनो मउका ला कभू नइ चूकना चाही।
लइका मन मा मया,मान-गउन, सहजोग, जिमेदारी अउ परवार,नता-लगवार के जरी ले जुरे के महत्तम खच्चित बाँटना चाही। अच्छा संस्कार , संवेदना अउ एखर सुद्धता हा हमर जिनगी मा बहुत महत्तम राखथे। अइसन कीमती जिनिस ला पाय बर हमला कोनो दुकान, इस्कूल अउ संस्थान मा जाय के जरुरत नइहे। सिरिफ गरमी के छुट्टी मा अपन पुरखा के गाँव-गंवई, घर-परवार ले सहज अउ सरल होके जुरव। अपन बबा-ददा ले मिलव अउ सेवा करव। एखर बदला मा गियान अउ अनुभव के मेवा पावव। लइकामन ला तो जरुर ए दरी गरमी के छुट्टी मा जिनगी के अमोल अनुभव ले बर कका-ममा गाँव ले चलव। ए कदम हा,ए उदिम हा हमला अउ लइकामन ला नवा जोस अउ उरजा दीहि अपन रास्ता ला निभाय बर। अपन जिनगी के सिरतोन सबक सीखे बर बबा-ददा के कोरा मा समे बिताना बङ जरुरी हावय आज के समे मा। आज हमर संस्कार मा गिरावट, मया मा मिलावट,तन-मन मा नकली सजावट के चलन बाढ गेहे। एखर ले बाँचे खातिर अपन पुरखा के जरी ले जुरे रहना अति आवश्यक हे अउ जरी ले जुरे खातिर अपन सियान मन के आसिरबाद अउ गियान के गंगा मा डुबकी लगाना बङ जरुरी होथे। ए सब ला सिद्धो मा सकेले बर हमला अपन कका-ममा गाँव-गंवई गरमी मा जाना बङ जरुरी हावय। ता फेर आवव चलिन अपन-अपन ममा-कका गाँव गरमी के छुट्टी मा मया के छँईहा मा समे बिताय खातिर।

कन्हैया साहू “अमित”
*शिक्षक*
मोतीबाङी परसुराम वार्ड~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9200252055 / 9753322055