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व्यंग्य

चलव चली ससुरार

एच.एम.टी. के भात ल थोकिन छोड़ दीस अउ मुंह पोंछत उठगे। दुलरवा के नखरा देख के मैं दंग रहिगेंव। जेन दुलरवा ह दू रुपिया किला वाले चाउर के भात खाथे वोह एचएमटी के भात ल छोड़ दीस। साल भर में एकाध बार आमा खावत होही तेन ह आमा ल वापिस कर दीस। जिल्लो के दार खवइया ह राहेरदार ल हीन दीस। वाह रे! दुलरवा तैं तो सही म दमाद बाबू दुलरू हो गेस।
दुलार सिंग ह मोर लंगोटिया दोस्त ए। दुलार के रू नाम दुलरवा हे। आज दुलरवा शब्द ह बदल के दुलरू हो गे। काबर के ओ हो अपन ससुर के दमाद बनगे हे।
सादी बर बिहाव के बाद पिंयर धोवाय के कार्यक्रम में ओला ससुरार जाना राहय। ससुराल के मायने सबो झन जानथव। लेकिन ससुराल के एक ठन अउ अर्थ हे। ससुर अउ आल मिलके ससुराल बने हे। जिहां जतका मनखे हे सबो ससुर हे। उही ससुराल ए। कका ससुर, ममा सुर, फूफा ससुर बड़ा ससुर, मौसा ससुर जइसे कई ठन ससुर जब बइसुरहा हो जथे तब दमाद ह अपन इमोशनल अइताचार से ओखर होंस ठिकाना लाथे। अउ ससुर ह बेसुरा के बजाय स-सुर हो जथे। सास के भी महिमा अनंत हे। स धन आस बरोबर सास। जेला दमाद से अपन बेटी ल सुखी-सुखूी रखे के जादा आस होथे उही सास ए। सारी मन अपन भांटो से घेरी-भेरी साड़ीच मांगथें। अपन भांटो ल ले के बेरा आघूृ-पाछू घुमाथें अउ दे के बारी आथे तब बहाना बनाथे. का करबे भांटो गरीबहा मनखे जादा नइ दे सकन, जतका बहाना बनाथे। का करबे भांटो गरीबहा मनखे जादा नई दे सकन। जतका मिले हे उही ल पाय मानहूं। ओइसने सारा मन होथें। सारा माने सम्पूर्ण, मतलब सारी खुदाई एक तरफ जोरू के भाई एक तरफ।
मोबाइल के जमाना आय से सारी-भांटो के परेमम चार चाँद लग गे हे। अकेल्ला अउ झिमझाम पाके सारी-भांटो मन रंग-रंग के गोठियाथें। येखर आघू में अंगद-रावन सम्वाद, परसराम-लछमन सम्वाद घलो परगे हे।
दुलरवा ल पिंयर धोवाय बर जाना राहय। मोर मेर आ के कहिस- भाई तहूं चलबे तब मजा आही। मोर तो बिहाव नई होय राहय मैं जब ले फूल कुंवर भौजी ल देखे राहवं तब ले अपन बर ओइसने सुघ्घर बाई खोजत राहवं। मैं हा तुरते हां कहि देंव। मैं सोंचेव फूलकुंवर भौजी ह कतेक सुंदर हे. ओखर घर में रहूं, ओखर हाथ के खाहूं, ओला ससन भर देखहूं कहिके मन में उछाह बाढ़ गे। फूल कुंवर भौजी ह सहीच में फुलकैना रहिस। ऐश्वर्या कस दुब्बर सरीर, रिया सेन कस मृग नयनी आंखी, माधुरी दीक्षित कस सुघ्घर हंसी, मल्लिका शेरावत असन बोल्डनेस, कैटरीना कस सपाट कनिहा, जूही चावला कस होंठ। सबो बिसेसता ओमा एके संग रहिस हे। ओखर परिवार ह दुलरवा के परिवार से दस गुना ज्यादा बड़हर राहय। दुलरवा ह अपन सुसरार के एक कोंटा में नइ रहिस। फूल कुंवर भौजी के हाथ ह पहिली फसल के रमकेरिया कस लरम-लरम मुंह ह उल्हुआ आमा पान कस नाजुक, सरीर चम्पा के फूल कस पिंयर-पिंयर दिखय। ओला देखके मैं महादेव में पांच नरियर बदेंव। महाराज महूं ल ओइसने सुघ्घर बाई देवा देबे। पर महादेव महाराज ह मोला अभी तक वेटिंग लिस्ट म रखे हे।
दुलरवा के ससुरार जाय बर बस के बाद रेलगाड़ी में बइठेन। रेलगाड़ी चलिस हावा आइस। भीड़ के दंदक से मुक्ति मिलिस। डोंगरगढ़ आते ही खिड़की ले झांकेंव। बम्लेश्वरी माता ल दूनो हाथ ल जोड़ के परनाम करेंव। आघू के प्लेटफारम में एकझन अप टू डेट नोनी खड़े राहय। मोला हाथ जोरे देख के उहू मोला नमस्ते कर दीस। दुलरवा देखिस तब पूछिस मैं ओला कइसे जानथस वो तोला नमस्ते करत हे। मैं सिरिफ हाँसेंव बोलेंव कुछु नहीं।
एक घंटा के बाद दुलरवा के ससुरार पहुंचेन। दुलरवा ह सफारी धमकाय, करिया चस्मा लगाय, करिया बूट पहिने ससुरार पहुंचे राहय। चस्मा में चिपके कम्पनी के नाम के स्टिकर ल नइ निकाले राहय। काबर निकालही जी? स्टिकर ल निकाल दिही तब चस्मा ह नवां कइसे लगही? चस्मा ल नवां बनाय रहे बर स्टिकर ल नइ निकाले राहय। ठीक ओइसने जइसे फटफटी लेवइया मन नंबर आ जाए के बाद भी नंबर प्लेट ल कोरा रखे रहिथें। काबर कि नम्बर लिखाय से गाड़ी मन जुन्ना लगथे। भले ट्रेफिक में पकड़ाय के बाद पचास रुपिया देबर पड़थे फेर नवां गाड़ी के रुतबा तो बने रहिथे।
दुलरवा के जाते साठ घर के सबो झन नुरिया गे। घर में दमाद ल देख के सबो झन खुस होगे। चाय-पानी के बाद खान लग गे। आमा, बिजारौ, पापर, अचार, दू ठन साग, घींव लगे रोटी परोसे गीस। अब दुलरवा ह अपन असली रोल में आ गे। आमा ल निकलवा दीस। कहिस ये साल आमा खा-खा के जी ह असकटागे हे। बिजौरी ल आधा खा के छोड़ दीस। दार ल आधा करवा दीस। कहिस बिना तड़का मारे दार ह मोर से नइ खवावय। ए.एमटी के भात ल थोकिन छोड़ दीस अउ मुंह पोंछत उठगे। दुलरवा के नखरा देख देख के मैं दंग रहिगेंव। जेन दुलरवा ह दू रुपिया किला वाले चाउर के भात खाथे वोह एचएमटी के भात ल छोड़ दीस। जिल्लो के दार खवइया ह राहेरदार ल हीन दीस। वाह रे! दुलरवा तैं तो सही म दमाद बाबू दुलरू हो गेस। मैं मने मन सोचेंव मोला काबर रिसा गेस दमाद बाबू दलरु वाले गाना के सुरता आ गे फेर चुपचाप मुड़ी ल नवाय मैं खावत रहेंव। बोलेंव कुछु नहीं।
सुसरार में जाय के बाद दमाद के बेटरी ह आटोमेटिक चार्जिंग हो जथे। फेर दमाद के पावर ल झन पूछ। खाय के बाद ओखर सारा ह पूछिस भाँटो का पान खाथव जी? दुलरवा कहिस मीठी पत्ती 120, 300, ठंडाई, लायची। मैं मनेमन हांसेव-लगा ले रे दुलरवा तैं अपन ससुर ल चूना। कपरी पान ले उप्पर नइ उठे रेहे तें हा मीठा पत्ती उहू में रंग-रंग के मसाला। मैं हा 120 अउ 300 ल जोड़ेंव तव 420 हो गे। माने दुलरेवा ह चार सौ बीसी में उतर गे हे।
दुलरवा के ससुर ह हमाद ल कपड़ा खरीदवाय बर दुकान लेगिस। देखव जी! कोन कलर अउ कोन कपड़ा ल पसंद करहू ते? दुलरवा ह हिसाब करे के बहाना करके दुकान ले खसक गे। मोबाइल निकालिस अउ अपन गांव के सेठ ल पूछिस? बने कपड़ा कोन कम्पनी के आये सेठजी? सेठ जी उल्टा पूछिस- एकाध ठन लाटरी निकल गे का रे दुलरवा? दुलरवा कहिस मोर ससुर ह मोला कपड़ा खरीदवाय बर दुकान लाय हे। सेठ कहिस रोड एंड टेलर अउ रेमण्ड ह बने कम्पनी ए। दुलरवा ह रोड एण्ड टेलर ल भुला गे। दुसरइया कम्पनी याद रहिस उहू ह उल्टा-पुल्टा। रेमण्ड के नाम तो दुलरवा के बाप तक नइ सुने रहय तब याद का रखतिस। रेमण्ड काहत-काहत डायमण्ड कहि डरिस। सेठ ह डायमण्ड कंपनी के 70 रुपया पीस वाले पेंट अउ 50 रुपिया पीस वाले सर्ट ल पकड़ा दीस। जादा होसियार बने के चक्कर में आदमी कभू-कभू बैकूफ बन जथे। ससुर बने बर पथरा के करेजा रखेबर लगथे ताकि दमाद के हर अइताचार ल सहे जा सकय। थोकिन होवय या जादा पर हर दमाद अपन ससुर ल जरूर कोंसथे। दमाद ल ओखर करनी के पता तब चलथे जब वो हा एक दिन खुद ससुर बन जथे।
बिदाई के दिन आइस। दुलरवा ह नहा खोर के बजार वाले अत्तर ल अपन सफारी सूट के खखोरी में चुपरिस अउ करिया चस्मा लगा के तियार हो गे। महूं ल अत्तर देइस में कहेंव भाई राहन दे मोर माथा पिराथे।
फूल कुंवर भौजी ह साज सिंगार कर के निकलिस तब मैं हा ओला देखतेच रहि गेंव। मने-मन दबंग पिक्चर के गाना, तेरे मस्त मस्त दो नैन मेरे दिल का ले गया चैन… वाले गाना ल गाए बर धर लेंव। भौजी ल देख के महूं ल कुछ-कुछ होता है जइसे फीलिंग आ गे। पर मैं ओला दबाएंव। कामना जब भावना के उप्पर हावी हो जावय तब ओला दबा देना चाही।
हरियर-हरियर चूरी, रानी कलर के लुगरा, हाइहिल के सेण्डिल, मैरून लिपिस्टिक में फूल कुंवर भौजी ह परी जइसे सुन्दर लगत राहय। बिदा होइस बइठेन रेल, रेल के अंदर पेलम पेल। भीड़ अतका रहिस के फूल कुंवर भौजी से दुरिहा अलग सीट में बइठे बर परगे। ऐती ओती झांकेंव फेर पोंडा जगह नई मिलिस। जे मेर से फूलकुंवर भौजी ल चोरी-छिपे झांक संकव। किस्मत ल दोस दे के खेतखार ल खिड़की ले झांके ल धरलेंव। अइसे लगय के हमन उहीच जघा बइठे हन अउ खेत खार मन उत्ताधुर्रा पाछू कोती दौड़त हे। जइसे डंडा सुरउल खेलत खेलत ओमन तियो दौड़ के दाम देवत हें। ले दे के सफर खतम होइस। बड़ तकलीफ पाएंवख का करबे भई सफर में सफर तो करना च पड़थे।
आये के बाद दुलरवा ल ओखर ससुराली नखरा के बारे में पूछेंव। दुलरवा कहिस, ससुरार में जतके नखरा मारबे ओतके इात मिलथे। हमर का हे जी। जउन जाही ससुर के जाही तव हमला नखरा मारे में का हे? महूं सोचेंव-
मजा लेना हे तव संगी, चलौ ससुर घर जाबो।
हमर का आही के जाही, मेंछरा-मेंछरा के खाबो।
त चलव चली का ससुरार?

डॉ. राजेन्द्र पाटकर ‘स्नेहिल’
बेरला

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