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कहानी

चिरई चिरगुन अतका तको नईये, वाह रे मनखे





एसो के देवारी गाँव गे रेहेव, गाँव जाथव त तरिया म नहाय के अलगे मजा रहिथे, अईसे लागथे बुड़ के नहाबे त कभू तरिया में नहाय नई रेहेव। नाहवत नाहवत मोर नजर तरिया पार के बंभरी के रूख म गिस जेमे पड़की चिरई ह खोंदरा बनाय रहाय, खोंदरा म दू ठक पिला ह चोंच ल निकाल के झाकत राहय। माई चिरई मन चोंच म दबा के चारा ल ला लाके खवावत रहाय, घेरी बेरी फुदुक फुदुक के आवय चारा ल खवावय, मेंहा कठ खागेव पिला मन के चारा खवई ल देखके, पिला चिरई मन अतेक फड़फड़ावत रहाय नानचुन डेना ल फैईला फैईला के जईसने राउत मन लौठी उठा के दोहा पारथे देवारी म तईसने। देख के अतेक निक लागिस वाह रे चिरई के जात कतेक मया हे अपन पिला मन बर, फेर सोंचते सोंचत तरिया ले नहा के घर आवत रेहेव त मोर घर के पहिलीच एक ठन खपरैल के मकान हे तेन कच्चा मकान में दूलारू अऊ फूलबती के घर पड़य, ओकर दू झन लईका रिहिस हे।




तिहार के दिन रिहिस हाल चाल पूछे बर ओकर घर में घुस गेव, उहाँ देखथव त लईका मन चीरो बोरो रोवत राहय, पुछेव त पता चलिस दाई ह ओकर काम बूता म मंजूरी कमाय बर गेहे। ददा ह ओकर पी खा के आय हे अऊ खटिया म पटीयाय परे हे। लईका मन लाँघन, बिन दाई ददा कस सोगसोगावन बईठे आँखी ले आँसू बोहवत सिसकत राहय, फेर मोला बने नई लागिस लईका के सिसकई ल देखके दस अकन रुपया देयेव जाव बेटा दुकान ले बिस्कुट खा लेहू कईके, अऊ ओकर घर ले निकल गेवI त एक झन संगवारी ल पुछेव ये दुलारू ह काम बुता करथे ते नही कईके, संगवारी ह बताईस मत पूछ भाई दुलारू के ददा दाई जीयत रिहिस त पता नई चलत रिहिस हे, घूम घूम के खाय अऊ मेंछरावत रिहिस हेI एके झन लईका दाई ददा के, निचट सुखियार कोनो काम नई करत रिहिस हे, दाई ददा के मरे के बाद गलत संगति में आ के बिगड़ गेहे,बिना नशा के रहे नई सकय, जेन कमा के लाथे बिचारी फुलबती ह उहू ल तो मार पीट करके नगा लेथे। रोज रोज के येकर इही हाल ऐ, येकरे सेती लईका मन के पढ़ई लिखई छूट गे, न खाय के ठिकाना न सुते के, बिन दाई ददा के लईका असन बेहड़वा होगे, अतका गोठीयावत ले हमर मन के, फुलबती ह तको आगे अऊ मोर पाव परिस, बोलिस के दिन के छुट्टी में आय हस मुन्ना भैय्या कईके, में केहेव परनदिन चल देहु नोनी, खुश रा कईके आशीष देव, जादा गोठीया नई सकेव फुलबती बहिनी के दुख पीरा ल सुनके।
जेठऊनी बखत फेर गाँव गेव त पता चलिस दुलारू ह खत्म होगे हे कईके, गाँव के सियान मन बताईस पीयई पीयई अऊ रात दिन नशा करई में मरिस हे, कतको झन बने होगे मरगे ते अईसनो घलो गोठीयावत रिहिस हे। फेर मेंहा सोचेव वाह रे मनखे दारू जैईसन जहर के जगा बने सुग्हर दूध दही अमरित ल खातेच पीतेच त अईसन मौत नई मरतेच, न तो लईका मन अनाथ होतिच न बाई ह तोर विधवा, वाह रे निशा करईया निरदई मनखे चिरई अतका तको नई होयस रे जेन ह रोजे रोज अपन पिला मन ल देवारी तिहार के मजा देवत रिहिस। संगवारी हो ओकरे सेती कहिथव निशा ह नाश के जर ऐ, हमन तो मनखे अन जब चिरई चिरगुन रोजे रोज तिहार मना सकथे त हमन काबर नई मना सकन।

विजेंद्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (जिला-रायपुर)