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छत्तीसगढ़ी लोककथा : राजा के मया

एकठन राज मा एक राजा के बने-बने राजकाज चलत रहय। तइसने मा राजा ला एक मिट्ठू ले मया हो जाथे। राजा मिट्ठू बर बढ़िया सोना-चांदी रत्न ले गढ़े fपंजरा बनवाइस अऊ मिट्ठू ला पिंजरा मा धांध दिस। राजा मिट्ठू के मया मा रोज, दिन मा तीन बार मिट्ठू ला देखे बर आय अऊ अपन हाथ ले बिहिनिया, संझा खाना खवाय। राजा ला मिट्ठू बर अतेक मया करत देख के राज दरबारी अऊ परजा मन गुनें ला लागय कि अइसने मा राजा के काम-काज कइसे चलही ? फेर राजा ला कोन समझाय। राजा ला समझाय मतलब राजा ले बैर करना होथे। अऊ अइसने दिनों-दिन राजा ला मिट्ठू बर मया बाढ़े लागिस।

एक दिन के बात आय राज मा राजा के गुरू राजगुरू ह आयिस त राजा मंत्री ला कहिस कि मय ह आज मिट्ठू ला खाना खवाय बर नई जा सकंव त तूही मन मिट्ठू ला खाना खवा देहू अऊ मिट्ठू बता दुहू कि राजा के गुरू हा आय हे तेन पाय के आज खाना खवाय बर नई आ सकय। मंत्री ह राजा के कहे बात ला मिट्ठू ला कहिस अऊ खाना खवाय लागिस त मिट्ठू ह खाना खाय ले मना कर दिस अऊ कहिस कि मय राजा च के हाथ ले खाना खाहूं नहिते भले लांघन रही जाहूं। अऊ मिट्ठू खाना खाबेच नई करिस।

दूसर दिन फेर राजा ह मंत्री ला कहिस कि मिट्ठू ला खाना खवा देबे त मंत्री ह कहिस कि राजा जी मिट्ठू हा तोरेेच हाथ ले खाना खाहूं कहि के काली ले लांघन हावय त थोकिन तूहीे मन चल के मिट्ठू ला खाना खवा देतेंव। मंत्री के गोठ ला सुन के राजा ठीक हे कहिस अऊ खुदे मिट्ठू ला खाना खवाय बर चल दिस । काबर कि राजा ला मिट्ठू बर अबड़ मया रहय। राजा ला मिट्ठू बिना एको बेरा बने नई लागय। राजा जब मिट्ठू करा गिस अऊ खाना खवाय बर हाथ आघू बढईस त मिट्ठू हा राजा ला कहिस काली काबर नई आय रेहेस खाना खवाय बर अऊ मोला देखे बर ? राजा कहिथे काली के मोर गुरू आय हे तिहि पाय के नई आय रहेंव। मिट्ठू राजगुरू आवत हे त खाना खवाय ला नइ आव कही के पहली ले काबर नइ बताय रहे ? राजा कहिस राजगुरू भगवान के रूप होथे। वो पहली ले बता के नइ आय । जब भी राज मा, कोना बिपत अवइया रहिथे त राजगुरू हा आके अवइया बिपत ला टारे के रद्दा दिखाथे। जम्मों राजकाज अऊ परजा केे बिपत ला टार देथे। तिही पाय के राजगुरू ले मुंहाचाही करे बर जम्मों प्रजा मन अपन दुःख ला लेके आथे अऊ गुरूजी ले प्रश्न रखथे। गुरूजी ओकर प्रश्न के उत्तर देथे। तहन परजा मन अपन उत्तर समान प्ररसाद ला पाके खुसी-खुसी घर चल देथे। राजा के गोठ ला मिट्ठू हा सुनके कहिस तोर राज गुरू हा मोरो प्रश्न के उत्तर दे दिही का? राजा कहिस काबर नइ दिही बता तोला का प्रश्न पूछना हे मय तोर प्रश्न ला राजगुरू करा पूछहूं त मिट्ठू हा अपन प्रश्न ला कहिस – 1. मोला ये fपंजरा ले बाहिर निकले बर का करे ला पड़ही ? 2. माया रूपी तन ला आत्मा ले मुक्ति के रद्दा कइसे पाही ?

राजा ह राजगुरू करा जा के कहिस गुरूजी मय एकठन मिट्ठू पांेसे हंव जेला अबड़ मया करथंव अऊ वो मिट्ठू ह तुम्हर कर दूठन अमुख-अमुख प्रश्न राखे हे जोन ये आवय 1. मोला ये fपंजरा ले बाहिर निकले बर का करे ला पड़ही ? 2. माया रूपी तन ला आत्मा ले मुक्ति के रद्दा कइसे पाही ? राजा मिट्ठू के प्रश्न ला राजगुरू कर बताइस त राजगुरू कुछु बता नई पाईस अऊ उहीं कर बेसुध होके गिरगे। राजगुरू ला बेसुध देखके राजा हड़बड़ा जथे अऊ तुरते राजबईद ला बलाके राजगुरू के इलाज ला करवाथे। थोकिन बाद जब राजगुरू बने हो जथे त राजा मिट्ठू करा जाथे। मिट्ठू राजा ला कहिथे का उत्तर दिस तोर राजगुरू जी हा? राजा कहिथे तोर प्रश्न म कोनजनी का बात हे कि मोर राजगुरू ह तोर प्रश्न ला सुनके कुछु उत्तर दे ले पहली बेसुध होके गिरगे। मिट्ठू कइथे ठीक हे मोला मोर प्रश्न के उत्तर मिल गे अब ते जा सकथस। राजा जाय बर मुड़के थोरेच कन रेंगे रहिस अऊ येती मिट्ठू ह बेसूध होके गिर गे अपन डेना ला छतरा दिस अऊ दुनों गोंड़ ला ऊपर टांग दिस। मंत्री मन देखिस कि मिट्ठू ला का होगे अऊ तुरते राजा ला जाके बतईस राजा मिट्ठू ला देख के दुःख मा बुड़गे मिट्ठू ला fपंजरा ले बाहिर निकाल के अपन छाती मा लगा लेथे। आंखी ले आंसू के धार बोहावत मंत्री ला कहिथे मंत्री जी अब हमर मिट्ठू परान तियाग देहे चलो येला नदी के तीर माटी देके आबो राजा दुःख मा डुबे मिट्ठू ला अपन छाती मा लगाये-लगाये नदी किनारे जाथे अपन हाथ ले मिट्ठू ला पाटे के पूरतन भुइया खनथे अऊ अपन छाती ले उतार के मिट्ठू ला माटी दे बर खने गडढ़ा मा रखथे तइसने मा मिट्ठू फुर……रररररर के उड़िया के पेड़ के ड़गाली मा जा के बैठ जथे।

राजा दुःखी रहय त थोरकन खुस होगे अऊ कथे-अरे तय त fजंदा होगेस आजा मोर खांधा मा बईठ जा । मिट्ठू हा कहिथे कइसन अगियानी कस गोठियाथव महाराज का कभू बाण ले छूटे तीर लहुठ के आथे, मुंह ले निकले शब्द लहुठ जाथे, चरित्र मा लगे दाग कभू धुला जाथे? राजा जी मय त तोर fपंजरा मा धंधाये रहेंव अऊ fपंजरा ले बाहर निकले के रद्दा राजगुरू ले पुछेंव-राजगुरू हे तऊन फरिहाके भले नई बतइस फेर बेसुध होके मोला fपंजरा ले बाहर निकले के रद्दा दिखा दिस। फेर राजा जी तय त मोर मया मा धंधाये हस ते पाय के नई समझ पायेस ये मोर पहिली प्रश्न के उत्तर रिहिस। अऊ मोर दूसरा प्रश्न उत्तर आय-तय त राजा अस अऊ राजा के करतबय होथे कि राज मा रहईया जम्मों मनखे, जीव-जन्तु ला बरोबर मया करना चाही न कि कोना ला जादा अऊ कोनों ला कम अऊ जब तक कोनों मनखें मोह, माया, लोभ, ईष्याZ, क्रोध, अहंकार ला छोड़ के भगवान के भक्ति अऊ मानव जोनी करतब ला नई करही तब तक माया रूपी त हा आत्मा ले मुक्ति के रद्दा नई पा सकय। मिट्ठू के गोठ ला सुन के राजा जी ला आत्म गियान हो जाथे अऊ मोह माया ला तियाग के फिर से अपन राज पाठ ला करथे अऊ राज पाठ बरोबर चले लागथे।

त संगवारी हो ये लोककथा ले हमन ला ये सीख मिलथे कि संसार के कोनो भी जीव जन्तु ला सताना नई चाही, वोला fपंजरा मा धांध के नई रखना चाही अऊ मनखे के करतबय होथे कि सब्बो मनखे अऊ सब्बो जीव जन्तु ला एक बरोबर मया देके भाईचारा के नाता ले जम्मों के सम्मान करना चाही।

भोलाराम साहू ‘दाऊ’
ग्राम व पोस्ट हसदा-2
थाना – अभनपुर,
जिला – रायपुर (छ0ग0)
मोबा. 963001263

2 replies on “छत्तीसगढ़ी लोककथा : राजा के मया”

आपके काहनी ह बने लागिस भोलाराम साहू जी एकर बर आप ल बधाई |

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