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कहानी

दौना (कहिनी) : मंगत रविन्‍द्र

मन ले नहीं दौना, पाँव ले खोरी हे |
मया के बाँधे, बज्जर डोरी हे ||

अंधवा ला आंखी नहीं ता लाठी दिये जा सकथे. भैरा ला चिल्ला के त कोंदा ल इसारा म कहे जाथे. खोरवा लंगड़ा ल हिम्मत ले बल दिये जाथे . दौना बिचारी जनमती खोरी ये. आंखी कान तो सुरुजमुखी ये. आंखी के ओरमे करिया घटा कस चुंदी, रिगबिग ले चाँदी कस उज्जर उज्जर दाँत , सुकवा कस नाकबेंसरी, ढैंस कांदा कस कोंवर ठाठ म पिंयर सारी अरझे रहै पर बपुरी दौना एक गोड़ ले लचारी हे तिही पाय के दौना नाव छिप के “खोरी” नाव उजागर हे. पर हाँ गुन म दौनेच ये. अंगना दुवारी हर महमहावत रहै.

मन ले नहीं दौना, पाँव ले खोरी हे |
मया के बांधे, बज्जर डोरी हे ||

नानपन म खोरी के रंगु संग बिहाव होइस. तैहा आज कस तीखी तीखी ला तिखारत नई रहेंय. घर घराना अउ मन मिलै तहाँ जाँवर जोड़ी गढ़ देवंय. बस बढ़िया मजा ले जिंदगी चलै. रंगु तो पहली बड़ सिधवा रहिस पर आज ओकर रंग हर मैलावत हे. नानकन ओखी पाय तहाँ दौना ला रटारट पीटते पीटे, बस ठड़गी कस बैठे हस….

बारा बरिस तो होगे तभो ले पोथी नई उतारे. दुनिया बाल बच्चा बर तरसत रथे. लोग लइका ले घर दुवारी फुलवारी कस बन जाथे.

दौना बिचारी रंगू के घर फुलवारी ल महामहा नई सकत ये, जे पाय ते डारा ल खोंट देवै, का येहर मनखे के हाथ ये ? नहीं. भगवान देथे त परवा फोर के देथे . देवैया ल देथे त पोस नई सके अउ नै देवै तेकर बर बरत दीया अंधियार होते. ठकुरदिया कस सुन्ना घर अंगना हो जाथे . रंगू हर लइका पाये के लोरस म बारा उदीम घला करिस . जगा जगा देवता धामी म धरना धरिस , बैगा गुनिया के पाँव परिस , सुपा घोंरावैस पर कुंवार कस बादर बिन बरसे लहुट जाए. ओकर बर…..

देवता धामी पखारा, लहू गे बैद भइगे लबरा |
सरहा नरियर के खतहा, खोगरा मतला होगे डबरा ||

अब तो चिखला माते कस दौना के जिनगी होगे. गाँव के मंदनिहा झिटकू जेन छेंव पारा म बसे हें. मंद जे पियत पियत सगरी जिनगी के सुख ल सुखाये डबरा कस अंटवा डारे हे, तेकरे भपकी म आके रंगू हर ओकर बेटी चमेली ल दुसर कस डारिस. पिइस एक अध्धी तहाँ ले देख ओकर बकबकी ल. छीन म समुन्दर म पार बाँध देथे.

हिरदे म राम राम संझा सिरिफ सौ ग्राम ||

कहिस जब खोरी के कछु नई दिखत ये त काबर आने नई बना डरस ? लोग लइका रथे त बंस के नाव चलथे. अभी कतको उमर बाचे हे. बुढापा मज कोन थेमा होही. माटी पानी कोन दिही ? पितर पानी घला तो लगथे. मतवार के गोठ ल सुन के रंगू कथे – त का करंव. आधा उमर म कोन छोकरी दिही संसार घलव हांसही. कंही देख तो रंगू ल दाढ़ी मेंछा पाक गे तभो ले रंग चढ़ावत हे. झिटकू कथे हांसन दे संसार घला हांसेच बर तो बने हे. तंहू हांस पर आने अकम ले …मोर नोनी चमेली ल देखे हस ? तोर कस कोनो सजन मनखे मिलतिस त अभीच्चे बिहाव ल कर देंतेव. लबरहा झिटकू के गोठ ल सुन के रंगू के मन पलट गे. गुनिस …पियक्कड़ ये त का होइस मोर भबिस ल गुन के गोठियाइस हे. कहिस – का होही . ‘हाथे हँसिया खड़े बदोउर’ …हाथ म दर्पण त चंदा म रूप देखे कोन जाये. कतेक ल कहिबो एदे चमेली संग रंगू के बिहाव हो जाथे .

बेचारी दौना दाँत चाबके रहिगे . करही त करही का ? नई भावी तेला भाजी म झोर..! नोनी बाबू अवतार नई सकिस. येही ओकर लचारी ये तिही पाय के ओकर घर सउत चढ़ के आए हे पर हाँ ! दौना खोरी कयरहिन नोहे. मोर घर म दीया बरे अंजोर होय बंस के नाव चले, येही गुन के मनीता ल मारिस अउ चमेली ल सउत भाव
ले नई जान के छोटे बहिनी समझिस . घर दुवार के भार ल सौंप दिस. तिरिया धर्म के गोठ ल लखाइस . अब तो तारा कुची ल चमेली के हाथ धरा दिस. तोरे घर, तोरे दुवार खाले तीन जुवार. चमेली हा दौना के कहर ल पइस त पुन्नी के चंदा कस महमहाय लागिस. अइसे मजा ले जिनगी चलत हे….!

डेढ़ बछ्छर होगे. भगवान् के अपरम्पार लीला ये. संझा के बेर झुन्झकुर म चिरई मन किलकोल करत रहैन. पहटिया के बरदी के घंटी टापर बाजत हे. सुरुत नारायण अपन कोरा म जावत हे. छानी छानी जेवन के कुहरा उड़त हवंय. येती चमेली के देंह उसले हे. पारा-परोस के दू चार झन माई लोगन मन एक कुरिया म सकलाए हें. नवा जीव के कोंख ले एक सुंदर लइका जनम लेइस. खुसी ल का बतावंव. बाबू लइका सुनीस तहाँ रंगू के पाँव हर ताल पेड़ कस ऊंचा होगे. उत्ती मुंह करके खटिया म बइठे मुसकियावत हे. लेवनी पार के चोंची मेंछा ल रसा रसा के अंगरी म गुरमेटत हे.

समुन्दर के भंवना, दूसइया संड़वा , मोकइया कांटा अउ मिरतुक ककरो नोहे. येमन के हिरदे म दया मया के संचार नई रहै तैसे लागथे. पथरा म कतको रस रितोव, फोर ले भीतर ले जुच्छा के जुच्छा.. ऐसे काल घलो ये. चौंथावन दिन के ढरती बेरा लकलकाति घाम म माई चमेली के परान उखरगे. ओ तो दुसरावन दिन ले दसम्भार बुखार रहिस . बैगा हर हाथ छू के ओखद जोंगे रहिस . ओ तो चूल म रितोये एक दोना पानी बरोबर होगे, फुल बरोबर लइका ल धरती म मढ़ाके फिलफिली कस उडागे.

लोढा माढे पार म सिल बुडगे खेया |
कोंटा धरे न जाए हथोरी, कोन एला बुझाईया ||

बिपत के परबत फलक के एक चानी रंगू के मंधारा म गिरगे. खोरी के जगाये चौरा के झबुवा गोंदा ल हरही गाय हर खरखुन्द कर दिस . मही के मया भरे मरकी तिड़ीबिड़ी होगे. कथें मरद जात धीरज के खूंटा होथे पर रंगू कहाँ धीरज धरे. आंसू के धार छाती म तार बनगे.

कथें मरद मन कुतुबमीनार |
जाथे छंदल जल सावन धार ||

पर ऐसे नई ये. का दुःख ल कहाँ….. आंसू के धार संग दुनिया ल गुनत राग पानी ल उठाईन. दौना के फूल संग रंगू न पराग न पंखुरी. पर आज तो चमेली के झबुआ फूल ओकर अंचरा के थाही म अरझगे .सौत नहीं बहिनी ये…. जौन अपन पोटा के फूल ल छोड़ के गंवागे….. फूल हर मुरझाये झन…. दौना ला चेत करे ल परही. डउका जात तो सुक्खा पान ये . फूल जामे नई जाने. दौना खोरी के ममता जाग गे… अउ जी जान ले रतन बेटा ल सँभारे लागिस . ठेलका फर म गुदा नई रहै…. तभो ले दौना अपने जुक्खा डैँठी ल चुह्कावै . गाय अउ छेरी के गोरस म रोपा के सेवा करत ह. पारा के गंगा नोनी जेकर दुठन बाबू, दुसर के दुदुवा हे तभो ले साँझकुन दौना के बेटा ल रपोट के पियावै. दौना के छैन्हा महमहावत बड़ जुड़ रैथे . खच्चित अपन कोरा म झबुआ गोंदा ल फूले दिही. सरग म फूले कदम कस महमहवाहि मंगत ल भरोसा हे.

मन ले नहीं दौना, पाँव ले खोरी हे |
मया के बाँधे, बज्जर डोरी हे ||

मंगत रविन्द्र
ग्राम- गिधौरी पोस्ट- दादर कला,
भैसमा जिला-कोरबा, छत्तीसगढ़