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कहानी

नान्हे कहिनी: लइकाहा बबा

नउकरी ले रिटायर होये के बाद गांव ले ये सोच के अपन बेटा कना शहर आ गे कि बांचे जिनगी बेटा कने नाती मन संग खेलत खावत कट जाही। संझा सात बछर के नाती संग सहर के एक मात्र बगीचा मा घूमे बर आ गिन।
वो हा देखिन बगीचा मा जम्मो मइनखे घूमत-फिरत हावय, कोनो-कोनो बइंच मा या भुंइया के घांस मा बइठ के गोठियावत हावय। नान-नान लइकामन घांस मा घोंडत हावय। सूरज देवता पछिम मा डूबत हावय। चिरई-चिरगुन मन अपन-अपन खोदरा तनि लहुटत हावय। वो ह अपन नाती संग भुइयां मा बइठगिन। परोसी वरमा दिख गिन। उहू मन तिर मा आ के बइठ गिन अउ ऐति-वोती के बात ल गोठियाय लगिन। वरमा जी उंकर तिर मा बइठे पोता ले पूछिस- बाबू ए मन कउन हावय?
वो लइका हा अपन बबा कोति देख के बताइस- मोर दाई ह बताइस के ए हा हमर सगा आय अउ काली चल दिही। फेर अपन बबा कोति देखय अउ बतावय- दाई हा कहत रहिस कि सहर मा रहे बसे के बड़ तंगी होथे। बबा के सुते बर अलग ले कमरा नइए, कल बिहनिया गांव चल दिहि।
लइका के मुंह ले अतका सुन के, वोमन अवाक् रह गिन। ऊंकर हिम्मत नई होइस कि वरमा के नि देखय, तिर मा रखाय बंईच मा धड़ाम ले बइठ गिन। वरमा जी हा अपन कांपत हाथ उंकर कंधा मा रख दिन अउ माथा मा निकल आये पछिना पोछे लगिन।

चेतन आर्य
बसंती निवास,सुभाष नगर
महासमुन्द