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कविता

पितर के बरा

देख तो दाई कंउवा,छानी म सकलावत हे।
पितर के बरा अउ सुहारी,बर सोरियात हे।।

कुँवार पितर पाख,देख ओरिया लिपाये हे।
घरो घर मुहाटी म,सुघ्घर चउक पुराये हे।।
सबो देवताधामी अउ,पुरखा मन आवत हे।
देख तो दाई कंउवा…………………..

तोरई पाना फुलवा, संग म उरिद दार हे।
कोनो आथे नम्मी अउ,कोनो तिथिवार हे।।
मान गउन सबो करत हे,हुम गुंगवावत हे।
देख तो दाई कंउवा…………………..

नाव होथे पुरखा के,रंग रंग चुरोवत हावै।
दार भात बरा बर, लइका ह रोवत हावै।।
जियत ले खवाये नही, मरे म बलावत हे।
देख तो दाई कंउवा…………………..

बोधन राम निषाद राज
स./लोहारा , कबीरधाम (छ.ग.)
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