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गोठ बात

छत्तीसगढ़िया कबि कलाकार

पानी हँ धार के रूप लेके बरोबर जघा म चुपचाप बहत चले जाथे। जिहाँ उबड़-खाबड़ होथे पानी कलबलाय लगथे। कलकलाय लगथे। माने पानी अपन दुःख पीरा अउ उछाह ल कलकल के ध्वनि ले व्यक्त करथे। पानी के कलकल ध्वनि हँ ओकर जीवटता अविरलता अऊ प्रवाहमयता के उत्कट आकांक्षा ल प्रदर्सित करथे। ओइसने मनखे तको अपन सुख-दुख ल गा-गुनगुना के व्यक्त करथे। वोहँ अपन एकांत म जिनगी के पीरा अऊ उमंग ल गुनगुनाथे जेला संगीत कहिथन।

हमर छत्तीसगढ़ हँ गीत अऊ संगीत के अपार सागर म उबुक-चुबुक हे। इहाँ कोनो किसम के खानी नइहे बल्कि छत्तीसगढ़ ल कहूँ कला संस्कृति अउ गीत संगीत के दाहरा कहे जाही त कोनो किसम के अतिशयोक्ति नइ होही। कला अऊ संस्कृति हँ छत्तीसगढ़ के संस्कार बन गे हे।

ये हँ अभी के बात नोहय। कला अउ संस्कृति के धार हँ आदम जुग ले धरती म प्रवाहित होवत चले आवत हे। तभे आजो घलो दुर्गम जंगल भीतरी ले आदिवासी गीत-संगीत सुने बर मिल जथे। संगीत हँ मनखे के मन ल झुमे बर मजबूर कर देथे।
संगीत हँ मन के अतल गहराई म उतरके ओला भींजो भींगो डारथे। तभे तो मनखे संगीत ल सुनते ही झूमे लगथे। ओकरे सेती संगीत ल साधना माने गे हे। एक समे तानसेन हँ बादर ल बरसे बर मजबूर कर दिस। ए हँ संगीत ल साधना अउ साधक के शक्ति के रूप म प्रमाणित करथे।
साधना मँ शक्ति समाहित रहिथे। उही शक्ति के कारण मनखे का देवता घलो झूम जथे। कहिथे भगवान भाव के भूखे होथे। संगीत म साधना के इही भाव हँ अंतर्निहित होथे।

भाव हँ जइसे देखावा तड़क भड़क ले दूर रहिथे। ओइसने संगीत ल घलो देखावा अऊ तड़क-भड़क हँ फूटे आँखी नइ सुहावय। फेर आजकल देखे बर मिलथे के संगीत के नाम म देखावा, तड़क-भड़क अऊ फूहड़ता के प्रदर्सन जादा होय लगे हे। एक समे रिहिसे जब संगीत हँ कान के रस्ता मन म उतर के तन ल झूमा देवय। अब ओइसन बात नइ रहिगे। अब संगीत के नाम म फुहड़ता बिके लगे हे। अब अइसे होगे हे कि संगीत चालू होईस अऊ अड़म-गड़म नाच कूद। संगीत बंद होइस, के भूला जा। जबकि संगीत के सार्थकता उही म हे जेला सुनके मन झूमय नाचय तन नहीं।
संगीत के नाँव म अब हवस के प्रदर्सन होय लगे हे। माने आजकाल संगीत हँ हवस के पर्यायवाची होगे हवय।

लोगन कहिथे के जमाना बदल गे हे। जमाना नइ बदले हे। सोंच बदल गे हे। हमला अपन सोंच ल बदले के जरूरत हवय। आजकाल संगीत के नाँव म सोर सुने बर मिलथे। जबकि संगीत म सोर बर थोरको जघा नइ होवय। अऊ जघा रहना भी नई चाही। सबके अपन अपन मरजाद होथे। अऊ मरजाद म रहिके कुछू चीज के मरजाद बांचथे।



छत्तीसगढ़ में अइसे-अइसे गीत संगीत हे जे हँ मन म उतर जथे अऊ भींजो के चोरोबोरो कर डारथे। फेर देखे बर मिलथे के इन मन छत्तीसगढ़ के सीमा ल लांघ के अऊ दीगर प्रांत म सुने बर नइ मिलय ए हँ एक ठो गंभीर अऊ सोंचे के बूता हरे।

छत्तीसगढ़ म ही कई ठो दीगर प्रांत, बोली, भाखा के गीत हँ बेधड़क घुसर के इंहाँ ऊँहा सोर मचावत हे। इन ल सुनके गीत संगीत हमर गँवा गे हे अइसे लगथे। जबकि ओइसन बात नइ हे। एकर पाछू हमर मानसिकता, हमर कमजोरी हँ जुवाबदार हे। एकर मतलब हमी कमजोर हवन। हम कहूँ भी जावन त अपन भाखा ल बोले बर लजाथन। अपन प्रांत के गीत संगीत ल सुनेबर सकुचाथन, दूसर बोली भाखा के गीत ल सुन के भले झूम नाच लेवन। ओतका बेरा वो बेंदरा नाच म हमला लाज नइ लागय। एकर ले इही मतलब निकलथे के हम आजकल देखावा करे लगे हवन। देखावा उही मन करथे जेमन सही बात ल नइ जानय। जइसे थोथा चना बाजे घना।

अइसे नइहे के इंहा कोनो किसिम के कमी हे। कमी थोरको नइहे बल्कि ये सब हमर कमजोरी हरे। कहूँ अइसन कमी कमजोरी होतिस त सास गारी देवय ननंद चुटकी लेवय गीत म बंबई के संगे संग पूरा भारत नइ झूमतिस। टूरा नइ जानय रे नई जानय सहीं गीत ल होंठ ल कोनो होटल-बार नई चुमतिस।

आज कपड़ा फेंक के नंग धडंग नचइया के देखखइया, सुनैया सबो होगे हे। कर्नप्रिय संगीत तइहा के बात होए लगे हे। एकर जुमेदार हमर संस्कार हे। हम ओइसने संस्कार म पलत-जीयत हन अऊ भविस ल उही संस्कार देवत हवन।

पीछू एक ठन अऊ जबर कारण देखे बर मिलथे के हमार संस्कृति अऊ समाज के ठेकेदार मन खुदे नई चाहय के हमर संस्कृति, गीत, संगीत देसराज के सीमा ल लांघ के अपन परचम लहरावय। उन ल सिरिफ अऊ सिरिफ पइसा चाही। जेन प्लास्टिक के कैसेट जतका बिक जाय उही असली संगीत हरे। जेन केसेट ले हम जादा से जादा पइसा रपोट सकन उही असली संगीत हरे। संस्कृति अऊ गीत संगीत के ठेकेदार बने बइठे परदेसिया मन छत्तीसगढ़ से कोनो मतलब नइ हे। न ही उन ल इहाँ के संस्कृति अऊ संस्कार से मतलब हे। उन तो कमाए रपोटे बर ही इहाँ डेरा डारे हावय त काबर उन इहाँ के संस्कृति ल आगू बढ़ाही। ओकरे सेती उन छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के नारा निकाले हे। जेन नारा म उन छत्तीसगढ़िया मन ल बाँध-छाँद के इहाँ के धन-दोगानी ल लूट सकय।

इहाँ के बयपारी मन छत्तीसगढ़ी गीत संगीत ल आगू बढ़ाही या एकर बिस्तार करही त बाहिर के कला परखी मन इहां के कलाकार, गीत संगीत ल पूछे-परखे लग जाही। जब अइसन होती त इहाँ के कलाकार मन के पूछ परख बाहिर म बाढ़े लगही। अइसन स्थिति म इन बनिया बयपारी मन के गुलाम कोन कलाकार रहिही। बस इही सोंच हर इहां के गीत संगीत ल आगू नइ बढ़ावत हे। उन सिरिफ कमावत हे। दूहत हे।
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया नारा हँ हमर लड़ई नोहय। बल्कि हमर मंघार म जबर ठोसरा हरे। जेला मारके उन मीठलबरा मन हमन ल चुप करा सकय अऊ जतेक हो सकय कमा -लूट सकय।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के मतलब इहाँ के मनखे बढ़िया हे जेन दबे रहि सकथे अपन हक बर नइ बोल सकय। इहाँ के माहौल बढ़िया हे जेमा बाहिर ले गैर कानूनी काम करके लुकाए-छिपे रहि सकथन। इहाँ प्राकृतिक सम्पदा भरपूर मात्रा म हे जेला बाहिर म बेंच के हम जादा ले जादा पइसा कमा सकथन, ए नारा के पीछू इंकर इही नीयतखोरी उजागर होथे।

ए नीयत ल अब हमला पहिचान के फरियाए बर परही। ए नारा के ठोसरा ल उलटा उंकरे मंघार म मारे बर परही। अपन हक मरजाद खातिर मुँह उचाके जुवाब देबर परही। हमला अब दब के नइ रहना हे । बल्कि आँखी ल उघार के चारो मुड़ा देखे परखे बर परही अऊ साबधान रहे बर परही। तभे हमर संस्कृति बांचही। हमर छत्तीसगढ़ बांचही। हमर भविष्य बांचही।

छत्तिसगड़िहा कबि कलाकार सुक्खा के दीया के बाती ।
बरसिस बादर चुहिस चार दिन मुॅह फारे ओरवाती।।

सीधवा मरगे ददा भाई म जेने जइसन पाइन जोतिन ।
काम सिरागे दुख बिसरागे नीचो निमउ कस छेछरा फेकिन।।
ये बीता भर पेट के खातिर उमर पहागे छोलत छाती।….

पइसा सबले बड़े मदारी जस पा ले गा के चटुकारी ।
कतको झिन बंदूके म सटक गे कोनो सुरा संुदरी के दुवारी।।
ओगरत झिरिया ल पाट डरिन रहिगे धरे कला के थाती।…….

हरेक गाॅव म चार पाॅच झिन मिल जाही जी कबि कलाकार।
साधन संगी संगत नइहे दिन पहावथे घूमत खार।।
निकल परिस त चिन्हैया नइहे मॅंजइया मन होगे घाती।…….

चुहत पसीना घाम पियास म गोबरहिन हे जतका सुग्घर ।
ओतका ओग्गर हीरवइन नइ होय पोते पावडर उपर पावडर।।
भइगे परदा म नकल उतारथे बिहिनिया सांझ पहाती।……….

धर्मेन्द्र निर्मल
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