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गोठ बात

कचरा कहां हे

कचरा कहां हे…. कचरा काकर घर हे … ओला बाहिर निकालव..हो$$। गांव मा हांका परत रहाय। ओती सहर मा घलो चोंगा माईक मा चिचयावत रहाय काकरो घर कचरा ल राखे हावव त ओला बाहिर निकालव। जेकर घर के बखरी बारी, भीतरी बहिरी अरोस परोस मा कचरा मिल जाही अउ जेन नइ बताही ओला 500 रुपया डांड़ जुरमाना लग सकत हे। ओती रमेसर मुड़ी धर के बइठे हे। काबर कि एक कचरा उंकरो घर हे जौन ल वो गजबेच मया करथे। आज इहां उहां सबो जगा ले कचरा ल दुरिहाय के उदिम करे जावत हे। का बड़हर का पेटपोसा, सबो कचरा ले घिनात हे, ओकर नांवेच ले घिनात हे अऊ अपन घर ले ओला दुरिहारबर सोचत हे। अब बिचारव ये कचरा कहां जाही। कचरा काकर घर जनम धरिस, कहां बाढ़िस अऊ ये कचरा ल अब दुरिहाय के जरुरत काबर परिस यहू ल जानना जरुरी हे। कचरा के जनम गृहस्थी के घर होथे, चाहे वो किसान होय, बेपारी होय, नौकरिहा होय डाक्टर, उकील कि नेता होय। अइसे अब तो सन्यासी अऊ बइरागी के घर घलो कचरा जनम लेवत हे। मनखे मन के मानता हे गरीब घर कचरा जनम लेथे। फेर सब ले जादा कचरा के पइदाईस कहां हे कहना मुस्कुल हे। इतिहास मा जावन त कचरा ले कोनो घिनाय नहीं ओकर राखे के जगा बनाय। जेकर घर जादा कचरा होय ओकर खुसी के ठिकाना नई रहय। आज कचरा तो जम्मो घर जनम लेवत है फेर ओहा गली मा बाढ़त हे। जौन गली मा देखव तौन गली मा बेंवारस कुकुर, गाय बरोबर परे हे अऊ बाढ़त हे।

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रमेसर हा गुरुजी ल पूछिस- गुरजी! ये कचरा ल बढ़ाय मा काकर हाथ अउ सुवारथ हे। गुरुजी बताइस – बेटा रमेसर, सुन आज सब बिकास चाही, बिकास चाही कहिके चिचयात हे। सबो घर बिकास खुसरगे ओकर मान गउन होवत हे। जब बिकास ह घर मा आ गे तब मनखे कचरा ला बाहिर करबे करही। रमेसर पूछथे-बिकास ह तो कचरा बर बने हे का गुरुजी ? जिहां बिकास रही कचरा तो घलो उहांच रही का?गुरुजी कहिथे- देख जी रमेसर, हमर गांव मा जब पहिली बिकास नइ आय रहिस तब हमर घर के कचरा ल खातू करके खेत खार मा डार देवन पाछू बिकास आइस घर हा गच्छी होगे, गली ह कंक्रीट होगे, आबादी जगा ह कब्जा होगे, बिजली पानी धर के आईस, सबले बड़े बात, युरिया, पोटास, फास्फेट अउ रिकीम रिकीम के रसायनिक दवई घलाव बिकास हा लइस। अब कचरा बाढ़गे तब सबके आंखी फूटत हे। कचरा ह बिमारी दिखे लागिस। सहर मा तो कचरा हा अब सुरसा के रुप ले डारे हे। का इस्कूल, का अस्पताल, का दुकान, का मकान, सबो जगा कचरा अपन पांव लमा डारे हे।

सोचे के बात आय राजनीति अउ संसद मा कचरा के मोहिनी रुप दिखत हे मनखे मन के दिमाग में कचरा ह कलजुग बरोबर बइठ गे हे। सबो झन एक दूसर ल कहात रहिथे, तोर दिमाक मा कचरा भरे हे। लइका, सियान, मोटियारी, डोकरी डोकरा, पढ़े लिखे गुनीक, अपड़, डाक्टर, मास्टर, ठेकेदार, इंजीनियर, करमचारी, अधिकारी, कलेक्टर, नेता, मंतरी, महात्मा जम्मो नानम परकार के कचरा ल अपन दिमाग मा धरके बइठे हे। जब सबोके अंतस मा कचरा हे तब गांव गली मा बाढ़े कचरा कइसे निकलही। सरकार कतको कहाय, नियम कान्हून बनाय, परचार परसार करय, जब तक मनखे के भरोसा नइ जीत पाही तब तक कचरा संग में जीवइया मनखे कचरा ल नइ दुरिहा सकय। सरकार अउ सरकारी अधिकारी, उद्योगपति मन गरीब ल कचरा समझथे। नेता मंतरी मा कचरा ल निकाले बर दसोठन उदिम करत हे फेर कतको कचरा ल घर ले निकालबेच नइ करत हे। कहिथे बेरोजगार देसबर कचरा हे। बिकास के बैरी आय। फेर जुन्ना जिनिस घलो कचरा आय, जौन बिकास के आय ले ठेलहा होगे। जौन दिन भुइंया के कोचियामन तौन दिन कचरा ल सम्मान के संग रहे के जगा मिलही मनखे मन कचरा ल उही दिन अपन घर ले निकालही अउ ठउर मा पहुंचही।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला गरियाबंद
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